अयोध्या का दीपोत्सव इस वर्ष केवल रोशनी का पर्व नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक आत्मा के पुनर्जागरण का प्रतीक बना। जब संपूर्ण अयोध्या 26 लाख दीपों से आलोकित थी और नया गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड बना, तभी मंच पर मिस वर्ल्ड टूरिज्म और गिनीज़ रिकॉर्ड धारक इशिका तनेजा ने माता सीता का रूप धारण कर पूरे भारत को भावविभोर कर दिया।

इशिका तनेजा केवल एक अभिनेत्री नहीं, बल्कि एक सनातन प्रचारिका और आध्यात्मिक व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने गौसेवा, महिला गुरुकुल स्थापना और धर्मजागरण अभियानों के माध्यम से समाज में नई चेतना जगाई है। जब उन्हें अयोध्या दीपोत्सव में सीता माता की भूमिका निभाने का अवसर मिला, तो उन्होंने इसे अभिनय नहीं, बल्कि भक्ति और साधना का रूप माना। स्वयं इशिका ने कहा, “सीता माता बनना मेरे लिए ध्यान था, प्रदर्शन नहीं। हर दीप में मैंने धर्म की विजय और योगी आदित्यनाथ जी की राष्ट्रनीति की ज्योति देखी।”
इशिका ने योगी आदित्यनाथ की सेवाभावना और धर्मनिष्ठ नेतृत्व की गहरी प्रशंसा की “योगी मुख्यमंत्री नहीं, एक धर्मसेवक की तरह कार्य कर रहे हैं। उन्होंने सिद्ध किया कि जब धर्म और राजनीति साथ चलते हैं, तब रामराज्य साकार होता है। उनकी राष्ट्रनीति भारत के लिए प्रेरणा है।”

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यह दीपोत्सव केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि नारी शक्ति, आत्मगौरव और भारतीय संस्कृति का उत्सव था। उन्होंने इशिका तनेजा को सीता के रूप में प्रस्तुत कर यह संदेश दिया कि आज की नारी भी त्याग, संयम और शक्ति की प्रतिमूर्ति है। इशिका का रूप धारण करना यह दर्शाता है कि आधुनिक युग में भी नारी में देवी का अंश विद्यमान है।
दीपोत्सव ने जहां अयोध्या को जगमगाया, वहीं हजारों स्थानीय कुम्हारों, महिलाओं और व्यापारियों के जीवन में भी उजाला लाया। इशिका का मानना है कि यह आयोजन खर्च नहीं, बल्कि आजीविका और आत्मगौरव का पुनर्जन्म है।
जब विपक्ष ने दीपोत्सव को “पैसे की बर्बादी” कहा, तो इशिका ने भावपूर्ण उत्तर दिया “जो दीपोत्सव को व्यर्थ कहते हैं, वे शायद उस तप और आँसू को नहीं समझते जो हमने अयोध्या के लिए बहाए हैं। यह भूमि सदियों से इस प्रकाश की प्रतीक्षा कर रही थी। दीपोत्सव व्यय नहीं, प्रायश्चित और पुनर्जन्म है।”
जनमानस के अनुसार, इशिका का सीता रूप धारण करना केवल धार्मिक अभिनय नहीं, बल्कि नारी आस्था और भारतीय संस्कृति का पुनर्प्रतिष्ठापन है। उन्होंने दिखाया कि जब एक स्त्री स्वयं को देवी के रूप में पहचानती है, तब समाज में भक्ति, शक्ति और सम्मान का दीप पुनः प्रज्वलित होता है।