बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे इस बार उत्तर प्रदेश की राजनीति की दिशा तय करने वाले हैं। खासकर पूर्वांचल क्षेत्र में इसका असर साफ दिखाई दे सकता है, क्योंकि बिहार और यूपी के बीच रोटी-बेटी का गहरा रिश्ता है। दोनों राज्यों के सीमावर्ती जिलों में लाखों लोग शिक्षा, रोजगार और पारिवारिक कारणों से लगातार आवाजाही करते रहते हैं।
उत्तर प्रदेश से सटे बिहार के करीब 20 विधानसभा क्षेत्र सीधे सीमावर्ती हैं, जिनमें गोपालगंज, भोजपुर, बक्सर, कैमूर, सीवान और सारण जैसे जिले शामिल हैं। इन इलाकों का यूपी के पूर्वांचल से भावनात्मक और सामाजिक जुड़ाव काफी पुराना है। विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार के चुनावी नतीजे पूर्वांचल में राजनीतिक समीकरणों को नया रूप देंगे।
बिहार चुनाव सिर्फ राज्य तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश की निगाहें इस पर टिकी हैं। यदि एनडीए की जीत होती है, तो इसका प्रभाव उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में भी देखने को मिलेगा। वहीं अगर एनडीए को हार का सामना करना पड़ता है, तो विपक्षी दलों को नई ऊर्जा और आत्मबल मिलेगा, जिससे देशभर में उनकी सक्रियता बढ़ेगी।
पूर्वांचल के दो प्रमुख शहर, वाराणसी और गोरखपुर, बिहार से मजबूत सांस्कृतिक रिश्ता रखते हैं। वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है, जबकि गोरखपुर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ माना जाता है। बिहार से जुड़े परिवारों, छात्रों और कामगारों की बड़ी संख्या इन दोनों जिलों में रहती है। इसलिए बिहार के नतीजे इन इलाकों के राजनीतिक माहौल को प्रभावित करेंगे।
भाजपा के काशी प्रांत के महामंत्री सुभाष कुशवाहा का कहना है कि पूर्वांचल का विकास ही बिहार में एनडीए की सत्ता वापसी का मार्ग खोलेगा। वहीं समाजवादी चिंतक डॉ. मणेंद्र मिश्र का मत है कि भाजपा की नीतियां विभाजनकारी रही हैं और जनता इस बार बदलाव का मन बना चुकी है। उनके अनुसार बिहार की राजनीतिक दिशा उत्तर प्रदेश की भविष्य की सियासत का संकेत देगी।
विश्लेषकों का मानना है कि बिहार के नतीजे पूर्वांचल की जनता की सोच को नया आयाम देंगे। यह चुनाव आने वाले वर्षों में यूपी सहित अन्य राज्यों की राजनीतिक रणनीतियों की नींव रखेगा। बिहार की जीत या हार केवल सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि दोनों राज्यों के सामाजिक और राजनीतिक रिश्तों की नयी परिभाषा भी तय करेगी।