पंकज चौधरी को जमीनी राजनीति का अनुभवी चेहरा माना जाता है। वो कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद में भरोसा रखते हैं और अपने कार्यकाल में पार्षद से लेकर केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय कर चुके हैं। करीब चार दशक के राजनीतिक अनुभव और सात बार सांसद रह चुके पंकज चौधरी संगठन की ताकत और चुनावी प्रबंधन दोनों का गहरा अनुभव रखते हैं। ऐसे में पार्टी नेतृत्व को उनसे पंचायत चुनाव से लेकर 2027 के विधानसभा चुनाव तक संगठन को मजबूती देने की उम्मीद है।
पार्टी आलाकमान की पहली पसंद पंकज चौधरी को यूपी का ‘चौधरी’ बनाकर बीजेपी ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को टेंशन में डाल दिया है। बीजेपी इस फैसले से खिसके कुर्मी वोट को अपने पाले में लाने की कोशिश करेगी जिसका सीधा नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा।
बीजेपी अपने हर एक फैसले से सबको चौका देती है
सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के लिए कहा जाता है कि वह अपने हर एक फैसले से सबको चौका देती है। हर बार की तरह इस बार भी बीजेपी ने लंबे समय से प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में चले आ रहे नामों को खारिज कर अपने पत्ते खोल दिए हैं। बीजेपी ने चौधरी दांव चलते हुए इस बार पूर्वांचल के कद्दावर नेता ,सात बार के सांसद पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का मन बना लिया था । जिसकी घोषणा रविवार को कर दी गयी गौरतलब है पार्टी आलाकमान की पहली पसंद पंकज चौधरी को यूपी का ‘चौधरी’ बनाकर बीजेपी ने सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की टेंशन को बड़ा दिया है।
बीजेपी इस फैसले से खिसके कुर्मी वोट को अपने पाले में लाने की कोशिश करेगी जिसका सीधा नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा। पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की पीछे की वजह को सपा के पीडीए फार्मूले की काट और ओबीसी वोट बैंक को फिर से साधने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। प्रदेश की राजनीति में कुर्मी समाज का प्रभाव लगातार बढ़ा है। सपा के जातीय समीकरण में कुर्मी समाज की अहम भूमिका रही है।
सपा के लगभग आधा दर्जन सांसद कुर्मी
सपा के लगभग आधा दर्जन सांसद भी कुर्मी हैं। इस तरह कुर्मी वोट बड़े पैमाने पर अखिलेश यादव के साथ गया है। बीजेपी ने इसी समीकरण को तोड़ने और कुर्मी वोट को फिर से अपने पाले में लाने के लिए पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है।
उत्तर प्रदेश में 35 फीसदी के करीब ओबीसी वोट बैंक में यादवों के बाद कुर्मी समाज सबसे प्रभावशाली माना जाता है। कुल आबादी में कुर्मी समाज की हिस्सेदारी लगभग 7 से 8 फीसदी मानी जाती है। यूपी में कुर्मी समाज का प्रभाव 25 जिलों में हैं लेकिन लगभग 16 जिलों में 12 फीसदी से अधिक सियासी ताकत रखते हैं। कुर्मी समाज प्रदेश की 45 से 50 विधानसभा सीट और 9 से 10 लोकसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है।
ऐसे में बीजेपी को उम्मीद है कि पंकज चौधरी के नेतृत्व में अपना दल और अन्य सहयोगी दलों से जुड़े कुर्मी वोट को फिर से बीजेपी के पाले में लाकर एक बड़ी जीत हासिल की जा सकती है।
कुर्मियों ने कम वोट दिया
2024 लोकसभा चुनाव में कुर्मियों ने बीजेपी को बहुत कम वोट दिया था। 2022 विधानसभा चुनाव में भी कुर्मियों ने कम वोट दिया था। ऐसे में बीजेपी को आशंका थी कि शायद इस बार भी कुर्मी समाज उन्हें वोट ना दें।अखिलेश यादव लगातार दावा कर रहे थे कि कुर्मी समाज बीजेपी के साथ नहीं है। अखिलेश के उसी दावे पर बीजेपी ने अपना दांव चला दिया है। बीजेपी के इस कदम से भाजपा को फायदा होने वाला है या नहीं इसका पता 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद ही चल पाएगा।