1. हिन्दी समाचार
  2. अयोध्या
  3. अयोध्या: अयोध्या में राम मंदिर के इतिहास पर एक नजर

अयोध्या: अयोध्या में राम मंदिर के इतिहास पर एक नजर

500 साल लंबे इंतजार के बाद अखिरकार अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा कर दी गई है। इसके बाद रामलला अपने दिव्य, नव्य और भव्य महल में विराजमान हो गए हैं। पीएम मोदी ने मंदिर के गर्भगृह में प्राण-प्रतिष्ठा पूजा के लिए संकल्प लिया, पूजा अर्चना की। इसके बाद पीएम मोदी ने रामलला की आंख से पट्टी खोली और कमल का फूल लेकर पूजन किया। बता दें कि रामलला पीतांबर से सुशोभित हैं।

By: Desk Team  RNI News Network
Updated:
gnews
अयोध्या: अयोध्या में राम मंदिर के इतिहास पर एक नजर

500 साल लंबे इंतजार के बाद अखिरकार अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा कर दी गई है। इसके बाद रामलला अपने दिव्य, नव्य और भव्य महल में विराजमान हो गए हैं। पीएम मोदी ने मंदिर के गर्भगृह में प्राण-प्रतिष्ठा पूजा के लिए संकल्प लिया, पूजा अर्चना की। इसके बाद पीएम मोदी ने रामलला की आंख से पट्टी खोली और कमल का फूल लेकर पूजन किया। बता दें कि रामलला पीतांबर से सुशोभित हैं।

READ MORE… RAM AARAHE HAIN: अयोध्या धाम के विघटन से लेकर अयोध्या धाम बनने तक का सफर

आइए हम आपको प्रभु श्री राम मंदिर के इतिहास के बारे में बताते हैं। करीब एक हजार साल तक राम मंदिर का संघर्ष चला। जिसमें हजारों लोगों ने अपने प्राणों की आहूति दी, कई राजवंश इस संघर्ष में लड़ते हुए समाप्त हो गए। त्रेता के ठाकुर और विष्णु हरि शिलालेख के अनुसार 1130 में गोविंद चंद्र और 1184 में जयचंद्र श्रीराम मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।

READ MORE… 20 प्वाइंट में समझें कैसे होगा भविष्य में श्री राम मंदिर

बताया जाता है कि आक्रंताओ से लड़ते-लड़ते जयचंद्र की वीरगति के बाद हिंदुओं का बर्चस्व खत्म हो गया। इसके बाद विदेशी आक्रांताओं का दौर बढ़ने लगा और खानवा के युद्ध के बाद महाराणा सांगा और चंदेर में मेदिनीराय प्रतिहार की विरगति के बाद बाबर ने अवध पर विजय के लिए मीरबाकी को सेनापति बना दिया। तत्कालीन हंसवर के राजा रणविजय सिंह और उनकी पत्नी जयकुमारी ने दूसरे स्थानीय राजपूत शासकों के साथ मिलकर बाबर के सेनापति मीरबाकी द्वारा श्री रामजन्म भूमि पर बाबरी मस्जिद का निर्माण के विरुद्ध युद्ध लड़ा।

READ MORE…चौरसिया परिवार खिला रहा रामलला को 102 वर्षों से पान की बीड़ा, 1992 में कर्फ्यू के दौरान भी रामलला को खिलाया पान

करीब 15 दिनों तक जन्मभूमि परिसर रणविजय सिंह के नियंत्रण में रही लेकिन युदध में सभी वीरगति को प्राप्त हो गए। मीरबाकी ने 1528 में मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया। 1678-1707 में औरंगजेब के समय पर राजेपुर के ठाकुर गजराज सिंह, सिसिंडा के कुंवर गोपाल सिंह, ठा. जगदम्बा सिंह, बाबा केशव दास और हजारों राजपूतों ने रामजन्मभूमि के लिए दर्जनों लड़ाइयां लड़ी। बाबर की मौत के बाद के मुगल सत्ता में जयपुर के शासकों का हस्तक्षेप अधिक रहा।

READ MORE…राम के रामायण से जुड़े 5 मिथक आइए जानते हैं

काशी, मथुरा, वृंदावन सहित उत्तर भारत के सभी धार्मिक स्थल मानसिंह की जागीरी में आते थे। जयपुर रॉयल के अभिलेखागार के अनुसार 1717 में सवाई जयसिंह द्वितीय ने सरयू नदी के किनारे श्री रामजन्म स्थान खरीदा और 1725 तक इस मंदिर का जीर्णोंद्धार करवाया।

READ MORE… राम अवतार की 4 कहानियां: जिसके कारण लेना पड़ा उन्हें मनुष्य रूप में अवतार

उत्तर भारत के इन धार्मिक स्थलों पर मिर्जा राजा मान सिंह से लेकर सवाई जय सिंह तक के जयपुर शासकों का अधिकार होने के कारण मुगल सत्ता द्वारा स्थानीय नवाबों को मंदिर परिसरों को दूर रहने के सख्त निर्देश थे। जयपुर शाही परिवार के पास राम मंदिर और उसके आसपास करीब 983 एकड़ के जमीन थी। सवाई जयसिंह की मौत के बाद ये क्षेत्र नवाबों के अधीन रहा।

READ MORE… श्रीराम के ये 5 मंदिर जिनका इतिहास है हजारों साल से भी पुराना

नवाबों के शासन में श्री राम जन्मभूमि पर फिर से मस्जिद का निर्माण होता रहा। अमेठी के राज बंधालगोती राजपूत वंश के गुरुदत्त सिंह और पिपरा के चंदेल राजा राज कुमार सिंह ने राम मंदिर के लिए नवाब सादात अली खान के साथ लगातार 5 लड़ाइयां लड़ी। गोंडा के राज देवी बख्स सिंह ने अवध क्षेत्र के सभी तालुकदारों और छोटे राज्यों को एकजुट किया और 1847 से 57 के बीच कई लड़ाइयां लड़ी।

 

इन लड़ाइयों में नवाब अली शाह बुरी तरह हार गया। इन लड़ाइयों के दौरान ही एक छोटा चबूतरा और राम मंदिर परिसर में मंदिर का निर्माण किया गया। जन्मभूमि स्थल पर चबूतरे के निर्माण के बाद अमेठी के एक मौलवी अमीर अली द्वार एक जन्म स्थान के लिए सेनिकों की एक टुकड़ी रवाना की गई। जिसे भीटी के राजन कुमार जयदत्त सिंह ने रोनाही गांव के पास रोक दिया और वहां एक लम्बी लड़ाई हुई।

 

कई राजपूत सैन्य दल से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। 1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश सरकार ने मंदिर परिसर पर भविष्य में विकास कार्यों पर रोक लगा दी। 1947 में देश आजाद हो गया लेकिन 1000 वर्षों से चल रहे इस संघर्ष ने विराम नहीं लिया। राम मंदिर आंदोलन के जनक मेवाड़ के वीरमदेवोत राणावत महंत दिग्विजयनाथ ने इस आंदोलन को संगठनात्मक स्वरूप दिया और 1969 में अपनी समाधि से पहले तक लगातार इस कार्य में कार्यरत रहे।

 

उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह रघुवंशी ने 1 फरवरी 1986 में पहली बार राममंदिर के ताले खुलवाए। 1949 में केंद्र और राज्य सरकार पर विवादित ढ़ांचे से प्रभु श्री राम की मूर्ति हटाने का दवाब था। लेकिन उस वक्त फैजाबाद के सिटी मजिस्ट्रेट ठाकुर गुरदत्त सिंह ने मूर्ति नहीं हटने दी। जिसके चलते उन्हें अपनी नौकरी गंवानी पड़ी। विवावित ढांचा गिराया गया और आज योगी आदित्यनाथ के त्याग, तपस्या और परिश्रम के फलस्वरूप प्रभु श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो गई है।

 

  • अयोध्या में राम मंदिर के इतिहास पर एक नजर
  • सफल हुआ हजारों साल का त्याग, तपस्या और बलिदान
  • 500 साल के बाद अपने महल में विराजे प्रभु श्रीराम
  • पीएम मोदी ने की रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा
  • असंख्य कुर्बानियों के बाद अपने घर में पधारे प्रभु श्रीराम
  • मीरबाकी ने 1528 में मंदिर तोड़कर बनाई थी बाबरी मस्जिद
  • राणासांगा की मौत के बाद बाबर ने मीरबाकी को बनाया था सेनापति

इन टॉपिक्स पर और पढ़ें:
Hindi News से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें गूगल न्यूज़, फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर पर फॉलो करे...