उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर से जुड़ा उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट विधेयक, 2025 अब कानून बन गया है। विधानसभा और विधान परिषद-दोनों सदनों से पारित होने के बाद राज्यपाल की मंजूरी मिलते ही यह विधेयक अधिनियम में परिवर्तित हो गया है। आज उत्तर प्रदेश विधानसभा में इसका औपचारिक ऐलान किया जाएगा। विधानसभा की प्रमुख सचिव प्रदीप दुबे सदन को इस संबंध में आधिकारिक जानकारी देंगी।
सरकार ने स्पष्ट किया है कि इस कानून का उद्देश्य मंदिर की सदियों पुरानी धार्मिक परंपराओं को बनाए रखते हुए भक्तों के लिए बेहतर प्रशासन, पारदर्शिता और सुविधाएं सुनिश्चित करना है। स्वामी हरिदास जी के समय से चली आ रही रीति-रिवाज, उत्सव, अनुष्ठान और परंपराएं बिना किसी हस्तक्षेप के पूर्ववत जारी रहेंगी। नए कानून के तहत मंदिर प्रबंधन के लिए एक सशक्त और वैधानिक ढांचा तैयार किया गया है, जो श्रद्धालुओं और मंदिर व्यवस्था-दोनों के हित में कार्य करेगा।
इस अधिनियम के लागू होने के बाद मंदिर की दर्शन व्यवस्था, पुजारियों की नियुक्ति, उनका मानदेय तथा अन्य सुविधाएं मंदिर न्यास (ट्रस्ट) द्वारा तय की जाएंगी। सरकार का कहना है कि इससे मंदिर प्रबंधन में एकरूपता आएगी और श्रद्धालुओं को सुव्यवस्थित सुविधाएं मिलेंगी।
नए कानून के अनुसार, मथुरा स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर से जुड़ा समस्त चढ़ावा, दान और चल-अचल संपत्ति न्यास के अधीन होगी। इसमें मंदिर में विराजमान विग्रह, मंदिर परिसर, परिक्रमा क्षेत्र में देवी-देवताओं को अर्पित भेंट, पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए दी गई राशि, दान में मिले चेक, आभूषण और अन्य सहयोग शामिल होंगे। कानून के तहत मंदिर को प्राप्त सभी दान और संपत्तियां मंदिर की संपत्ति मानी जाएंगी।
इस ट्रस्ट में कुल 18 सदस्य होंगे। इनमें से 11 सदस्य मनोनीत किए जाएंगे, जबकि 7 पदेन सदस्य होंगे। मनोनीत सदस्यों में वैष्णव परंपरा और विभिन्न संप्रदायों से जुड़े तीन प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होंगे, जिनमें साधु-संत, मुनि, गुरु, विद्वान, महंत और आचार्य हो सकते हैं। इसके साथ ही गोस्वामी परंपरा से स्वामी हरिदास जी के दो वंशज भी न्यास के सदस्य होंगे।
मनोनीत सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्ष का होगा। पदेन सदस्यों में मथुरा के जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और राज्य सरकार के नामित प्रतिनिधि शामिल रहेंगे। यदि कोई पदेन अधिकारी सनातन धर्म को न मानने वाला होगा, तो उसके स्थान पर कनिष्ठ अधिकारी को सदस्य बनाया जाएगा।
न्यास की बैठक प्रत्येक तीन माह में आयोजित की जाएगी। बैठक की सूचना कम से कम 15 दिन पहले देना अनिवार्य होगा। सरकार का कहना है कि इस व्यवस्था से मंदिर प्रबंधन में नियमित समीक्षा, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होगी।
सरकार का मानना है कि श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट कानून से न केवल मंदिर की व्यवस्थाएं सुदृढ़ होंगी, बल्कि श्रद्धालुओं को भी बेहतर अनुभव मिलेगा। यह कानून धार्मिक आस्था और आधुनिक प्रशासन-दोनों के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।