उत्तर प्रदेश के जनपद बिजनौर से एक गंभीर मामला सामने आया है, जहां गांव नारायणपुर निवासी छोटे सिंह ने ग्राम प्रधान सुमित्रा पर मनरेगा योजना में तीन लाख रुपये के भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है। छोटे सिंह ने बिजनौर कलेक्ट्रेट पहुंचकर जिलाधिकारी को एक शिकायती पत्र सौंपा, जिसमें उन्होंने बताया कि यह गबन सीधे तौर पर सरकार की गरीब मजदूरों के लिए चलाई जा रही महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत किया गया है।
शिकायतकर्ता छोटे सिंह का कहना है कि ग्राम प्रधान सुमित्रा ने योजना का लाभ वास्तविक मजदूरों तक पहुंचाने के बजाय अपने परिवारजनों को पहुंचाया। उन्होंने प्रधान पर आरोप लगाया कि उन्होंने अपने पति, बेटे और कुछ अन्य रिश्तेदारों के नाम से जॉब कार्ड बनवाए हैं, जबकि ये सभी लोग निजी व्यवसाय से जुड़े हैं और मनरेगा के तहत मजदूरी का काम नहीं करते। इसके बावजूद इनके नाम पर मजदूरी दर्शा कर फर्जी भुगतान कराया गया, जिससे गरीब मजदूरों का हक मारा गया है।
छोटे सिंह ने अपने शिकायती पत्र में पंचायत राज अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी जनप्रतिनिधि को यह अधिकार नहीं है कि वह सरकारी योजनाओं में अपने परिजनों को लाभ पहुंचाए। उनका यह भी कहना है कि जिस उद्देश्य से केंद्र और राज्य सरकारें मनरेगा जैसी योजनाएं चला रही हैं, वह इसी तरह की भ्रष्ट मानसिकता और फर्जीवाड़े की वजह से विफल हो रहा है। छोटे सिंह ने आरोप लगाया कि इस पूरे प्रकरण में ग्राम प्रधान ने न सिर्फ नियमों की अनदेखी की बल्कि अपने पद का दुरुपयोग कर सरकारी धन का गबन भी किया है।
उन्होंने कहा कि ग्राम प्रधान ने गरीब मजदूरों का हक मारकर न सिर्फ सरकारी धन का दुरुपयोग किया बल्कि सरकारी योजनाओं की साख को भी नुकसान पहुंचाया है। छोटे सिंह ने डीएम से मांग की है कि ग्राम प्रधान सुमित्रा और उनके परिवारजनों के खिलाफ तत्काल जांच कर कड़ी कार्रवाई की जाए, ताकि गांव के असली लाभार्थियों को न्याय मिल सके और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके।
शिकायत में यह भी कहा गया कि मनरेगा कार्यों की ग्राम पंचायत स्तर पर कोई प्रभावी निगरानी नहीं हो रही, जिससे ऐसे फर्जीवाड़ों को बढ़ावा मिल रहा है। छोटे सिंह ने मांग की है कि मनरेगा से जुड़े सभी फर्जी जॉब कार्डों की जांच कर उन्हें तत्काल निरस्त किया जाए और जिन लोगों ने अवैध रूप से मजदूरी ली है, उनसे वसूली की जाए।