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Loksabha Election 2024: झांसी संसदीय सीट पर बाहरी उम्मीदवारों का बोलबाला, 17 में से 9 चुनाव जीते

Loksabha Election 2024: आम चुनाव 2024 के तहत झांसी-ललितपुर संसदीय सीट पर बाहरी प्रत्याशियों का दबदबा न के बराबर दिख रहा है क्योंकि इस बार सभी पार्टियों ने यहीं रहने वाले नेताओं को प्रत्याशी बनाया है। पर यहां की जनता को बाहरी उम्मीदवार से खासा प्रेम है। इस संसदीय सीट पर कुल 17 बार मतदान हो चुका है, जिसमें से बाहरी प्रत्याशी 9 बार मैदान फतेह कर चुके हैं।

By: Desk Team  RNI News Network
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Loksabha Election 2024: झांसी संसदीय सीट पर बाहरी उम्मीदवारों का बोलबाला, 17 में से 9 चुनाव जीते

Loksabha Election 2024: आम चुनाव 2024 के तहत झांसी-ललितपुर संसदीय सीट पर बाहरी प्रत्याशियों का दबदबा न के बराबर दिख रहा है क्योंकि इस बार सभी पार्टियों ने यहीं रहने वाले नेताओं को प्रत्याशी बनाया है। पर यहां की जनता को बाहरी उम्मीदवार से खासा प्रेम है। इस संसदीय सीट पर कुल 17 बार मतदान हो चुका है, जिसमें से बाहरी प्रत्याशी 9 बार मैदान फतेह कर चुके हैं। जहां डॉ. सुशीला नैयर और राजेंद्र अग्निहोत्री ने 4-4 बार अपने जीत को सुनिश्चित कर चुकी हैं तो वहीं एक आम चुनाव में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी मैदान मार चुकी हैं। पर, आम चुनाव 2024 में इस संसदीय सीट से किसी भी बाहरी प्रत्याशी को नहीं उतारा गया है ऐसे में यहां की राजनीति रोचक होने वाली है।

सुशीला नैयर को खूब समर्थन मिला

भारत में साल 1957 में दूसरी बार लोकसभा चुनाव कराए गए। तब कांग्रेस ने झांसी-ललितपुर संसदीय सीट से डॉ. सुशीला नैयर को अपने टिकट से लड़वाया था। उस वक्त और आजादी के 7 साल के बाद तक न तो डॉ. नैयर झांसी को जानती थी और न ही झांसी के लोग यह जानते थे कि वह कौन हैं। आपको बता दें कि वह महात्मा गांधी की निजी डॉक्टर भी रही थी। संसदीय सीट से टिकट मिलने के बाद वह पहली बार झांसी के दौरे पर आई थी। तब विपक्षी प्रत्याशियों ने उनके बाहरी प्रत्याशी होने का मुद्दा खूब उठाया था। उस समय जब वे यहां से चुनाव लड़ रही थी तो यहां के स्थानीय प्रत्याशियों ने अच्छे से इस मुद्दे को बरगलाने का काम किया था।

बाहरी होने पर भी झांसी से किया मैदान फतेह

बाहरी होने के बाद भी सुशीला नैयर को लोगों ने खूब प्यार दिया और वे अपना पहला चुनाव भारी बहुमत से जीतकर संसद पहुंची। फिर उन्होंने 1962 और 1967 में हुए चुनाव में भी अपने जीत को सुनिश्चित किया। लेकिन 1971 में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। लेकिन साल 1977 में वह भारतीय लोकदल से टिकट लेकर चौथी बार सांसद बनकर दिल्ली पहुंची और इसके बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लिया।

1970 के बाद राजेंद्र अग्निहोत्री की थी सीट पर पकड़

झांसी में बाहरी प्रत्याशियों में देखें तो दूसरा नाम भाजपा से 4 बार सांसद बने राजेंद्र अग्निहोत्री का आता है। उनका जन्म कानपुर के एक गांव विजयपुर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के घर में हुआ था। उन्होंने अपने 12वीं तक की शिक्षा कानपुर से की थी, जबकि स्नातक की डिग्री के लिए वे लखनऊ शिक्षा प्राप्त करने गए थे। फिर इसके बाद उनकी स्टेट बैंक में जॉब लग गई और वे बैंक में काम करने लगे।

बैंक में काम करते हुए अशोक सिंघल के संपर्क आए राजेंद्र

बैंक में काम करते हुए राजेंद्र अग्निहोत्री अशोक सिंघल के संपर्क में आ गए और बैंक की नौकरी छोड़कर पूरी तरह से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में अपनी सक्रियता को बढ़ा दिया था। फिर 1970 में संघ ने उन्हें विभाग प्रचारक के रूप में झांसी भेजा था और इसके बाद उन्हें यहां इतना अच्छा लगा कि वे यहीं के होकर रह गए।

1980 में भाजपा से टिकट

1980 में राजेंद्र अग्निहोत्री को भाजपा के टिकट पर झांसी सदर सीट से विधानसभा का चुनाव जीता था। जबकि, 1989, 1991, 1996 और 1998 में लगातार चार बार यहां से वे सांसद के रूप में पहली पसंद रहे। आम चुनावों में विपक्षी प्रत्याशियों द्वारा उनके बाहरी होने का मुद्दा अच्छे से उछाला जाता था, बावजूद इसके वे चुनाव जीतते रहे। उनकी जनता पर अच्छी पकड़ होने के कारण भी वे चुनावों में जीत दर्ज करने में कामयाब होते थे।

उमा भारती ने भी जीता है यहां से एक चुनाव

2014 में भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को यहां से टिकट दिया। उमा का जन्म मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में हुआ था। वह खजुराहो से चार बार सांसद बनी और एक बार भोपाल से सांसद के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन किया। बता दें कि 2003 में मध्य प्रदेश से भाजपा ने उन्हीं के नेतृत्व में विधानसभा का चुनाव लड़ा था, जहां जीत हासिल करने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था। फिर 2014 में भाजपा ने उन्हें झांसी-ललितपुर संसदीय क्षेत्र से मैदान में उतारा वहीं पहली बार उमा भारती उत्तर प्रदेश के किसी सीट से चुनाव लड़ी थीं मैदान फतह करने में सफल हुई थी।

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