कन्नौज जनपद में केंद्र सरकार की बहुप्रचारित अमृत सरोवर योजना अधिकारियों की लापरवाही और खानापूर्ति की भेंट चढ़ती दिख रही है। इस महत्वाकांक्षी योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में जल संरक्षण और पारंपरिक जल स्रोतों का पुनर्जीवन करना था, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसके क्रियान्वयन में गंभीर खामियाँ सामने आई हैं।प्रशासन द्वारा योजना के प्रचार और दिखावे के लिए सिर्फ फोटो खिंचवाकर रिपोर्ट तैयार कर दी गई, जबकि वास्तविक काम अधूरा या नगण्य रहा। जिले के कई पुराने तालाब आज भी उपेक्षा की स्थिति में हैं, जिनमें जल संरक्षण की कोई गतिविधि नज़र नहीं आती।
ऐसी ही बदहाली का प्रतीक है कन्नौज के समधन नगर क्षेत्र का प्राचीन वील तालाब, जिसकी ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यता रही है। सैकड़ों वर्षों पुराना यह तालाब अब जलकुंभियों, झाड़ियों और गंदगी से पूरी तरह पटा हुआ है। इसकी अंतिम बार सफाई समाजवादी पार्टी (सपा) सरकार के कार्यकाल में हुई थी, जिसके बाद इसे किसी भी जल संरक्षण योजना में शामिल नहीं किया गया।
करीब 5 बीघे क्षेत्रफल में फैला यह तालाब आज एक गंदे पानी का गड्ढा बनकर रह गया है। जलकुंभी की परतें इसकी पूरी सतह को ढंक चुकी हैं और चारों ओर ऊँची-ऊँची जंगली झाड़ियाँ उग आई हैं, जिससे यह क्षेत्र पूरी तरह उपेक्षित और खतरनाक बन गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि तालाब से निकलती बदबू और जमा गंदगी के कारण संक्रामक बीमारियों का खतरा मंडरा रहा है। कई मवेशी झाड़ियों में फंसकर जान गंवा चुके हैं, जिससे ग्रामीणों में रोष भी है। सरकार की मंशा और योजनाएं चाहे जितनी अच्छी हों, लेकिन ज़मीनी क्रियान्वयन और प्रशासनिक निगरानी के अभाव में ऐसी योजनाएं सिर्फ कागज़ों पर रह जाती हैं। कन्नौज का वील तालाब इसका जीवंत उदाहरण है, जहां सुधार के नाम पर अब तक सिर्फ औपचारिकताएं पूरी की गई हैं।