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जातीय सर्वे के बाद सियासी हलकों में बहस शुरू, सत्ता पक्ष व विपक्ष कर रहा विश्लेषण

बिहार में 2 अक्टूबर को जातीय सर्वे के आंकड़े जारी होते ही अति पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की राजनीति और प्रतिनिधित्व की बहस एक बार फिर से शुरू हो गई है। सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने-अपने तरीके से विश्लेषण कर रहा है। कोई इसमें जल्दबाजी तो कोई सियासी गणित बता रहा है।

By: Desk Team  RNI News Network
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जातीय सर्वे के बाद सियासी हलकों में बहस शुरू, सत्ता पक्ष व विपक्ष कर रहा विश्लेषण

बिहार में 2 अक्टूबर को जातीय सर्वे के आंकड़े जारी होते ही अति पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की राजनीति और प्रतिनिधित्व की बहस एक बार फिर से शुरू हो गई है। सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने-अपने तरीके से विश्लेषण कर रहा है। कोई इसमें जल्दबाजी तो कोई सियासी गणित बता रहा है। लोगों को एक बार फिर मंडल कमीशन का दौर याद आने लगा है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या बिहार के जातिगत सर्वेक्षण से 2024 लोकसभा चुनाव पर भी असर पड़ेगा? बिहार के सत्तारूढ़ गठबंधन ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी I.N.D.I.A गठबंधन के लिए भी यह भाजपा के सामाजिक गठजोड़ को हिलाने और उसे तोड़ने का मौका है। नीतीश सरकार ने बिहार में जो गणना के आंकड़े जारी किए हैं, उससे इतना तय है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के प्रचार में जातिगत सर्वे बड़ा मुद्दा बनने वाला है। कांग्रेस भी भारतीय जनता पार्टी को घेर रही है। लेकिन, नीतीश सरकार के आंकड़े जारी करने के बाद लगभग सभी राज्यों में विपक्षी पार्टियां केंद्र सरकार से जाति गणना करवाने की मांग कर रही है। ऐसे में इस रिपोर्ट में जानते हैं कि बिहार में जारी किया गया जातीय सर्वे का आंकड़ा लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के लिए कैसे बड़ी चुनौती साबित हो सकता है?

जातीय सर्वे करने वाला बिहार बना पहला राज्य

बिहार देश का पहला जातीय सर्वे के आंकड़े जारी करने वाला राज्य बन गया है। इस सर्वे में बताया गया है कि बिहार में कुल 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 लोग हैं। इसमें से 2 करोड़ 83 लाख 44 हजार 160 परिवार हैं। इन 13 करोड़ लोगों में सबसे ज्यादा आबादी ओबीसी की है। यहां 63% ओबीसी हैं जिनमें से 27% पिछड़ा वर्ग और 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग है। वहीं 14.26% आबादी यादवों की है, 3.65% ब्राह्मण और 3.45% आबादी राजपूत (ठाकुर) की है। इन जातियों में सबसे कम संख्या कायस्थों की है। सर्वे के अनुसार प्रदेश में कायस्थों की आबादी केवल 0.60% है। इसके बाद एससी वर्ग की 19 प्रतिशत आबादी है।

सर्वे के बाद गड़बड़ा सकता है सियासी समीकरण

बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव में भले ही जेडीयू और भारतीय जनता पार्टी गठबंधन ने जीत हासिल की थी, लेकिन 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी 71 सीटों से गिरकर 43 पर आ गई, वहीं बीजेपी को 74 सीटें मिली। ऐसे में राज्य में नीतीश की घटती ताकत के बीच जाति सर्वे के आंकड़े जारी करना काफी महत्वपूर्ण कदम है। इस सर्वे के आंकड़े जारी होने के बाद बिहार में नीतीश और जेडीयू का प्रभाव भारतीय जनता पार्टी से ज्यादा हो सकता है। हालांकि, इस बात में भी सच्चाई है कि आने वाले लोकसभा चुनाव सिर्फ जाति सर्वे पर नहीं लड़ें जाएंगे बल्कि महंगाई और बेरोजगारी भी एक बड़ा मुद्दा होगा।

सर्वे का श्रेय लेने की कोशिश करेंगी कई पार्टियां

इसी साल के जून महीने में पटना में पहली बार हुई विपक्षी गठबंधन की बैठक के वक्त नीतीश कुमार ने जाति सर्वे का मुद्दा उठाते हुए कहा था कि जाति सर्वे गठबंधन के प्रमुख एजेंडे में से होना चाहिए। उन्होंने इसी बैठक में कहा था कि संसदीय चुनाव जीतने पर गठबंधन को जाति सर्वे करवाने और उसे लागू करने का वादा करना चाहिए, लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने इस पर आपत्ति दर्ज की थी। अब  नीतीश कुमार ने अपने प्रदेश में जातीय गणना के आंकड़े जारी कर दिए हैं तो ये बात भी सच है कि इस सर्वे का श्रेय कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियां लेने की कोशिश करेंगी।

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