भगवान बुद्ध की क्रीड़ास्थली माने जाने वाले पिपरहवा स्तूप से 1898 में खुदाई के दौरान मिले 331 बुद्धकालीन अवशेष 7 मई को हांगकांग में नीलाम होने जा रहे हैं। इस खबर से बौद्ध अनुयायियों और इतिहास प्रेमियों में गहरा रोष है। इस नीलामी को रोकने और अवशेषों को भारत वापस लाने की मांग को लेकर सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास के सहायक प्रोफेसर डॉ. शरदेन्दु कुमार त्रिपाठी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है।
इन अवशेषों को ब्रिटिश इंजीनियर और जमींदार विलियम कलक्स्टन पेपे ने 1898 में पिपरहवा में खुदाई करके प्राप्त किया था। माना जाता है कि यह स्थान कपिलवस्तु, यानी भगवान बुद्ध का बाल्यकालीन निवास था। गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनकी धातु मूर्तियों और अवशेषों को 8 भागों में बांटा गया था, जिनमें से एक हिस्सा शाक्य वंशजों द्वारा पिपरहवा स्तूप में रखा गया था। पिपरहवा स्तूप न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के बौद्ध अनुयायियों के लिए आस्था का प्रतीक है।
प्रोफेसर शरदेन्दु कुमार त्रिपाठी ने प्रधानमंत्री को भेजे गए पत्र में लिखा कि: “बुद्ध के पवित्र अवशेषों को भारत भूमि से बाहर ले जाना औपनिवेशिक लूट का हिस्सा था और अब उसे नीलाम करना हमारी आस्था के साथ गंभीर खिलवाड़ है।” उन्होंने यह भी कहा कि अब जबकि भारत एक वैश्विक सांस्कृतिक शक्ति बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, ऐसे में इन पवित्र धरोहरों को देश वापस लाना अत्यंत आवश्यक है।
यह नीलामी 7 मई 2025 को सुबह 10:30 बजे हांगकांग में होने जा रही है। पेपे के वंशज इन 2500 वर्ष पुराने अमूल्य अवशेषों को नीलाम कर आर्थिक लाभ लेना चाहते हैं। यह न केवल नैतिक अपराध है, बल्कि भारतीय विरासत की खुलेआम नीलामी भी है।
डॉ. त्रिपाठी की मांग है कि: भारत सरकार हांगकांग की सरकार और अंतरराष्ट्रीय नीलामी संस्थानों से राजनयिक स्तर पर संपर्क करे।
इन अमूल्य अवशेषों को भारत वापस लाया जाए और उन्हें राष्ट्रीय संग्रहालय या पिपरहवा स्तूप परिसर में प्रदर्शित किया जाए।
यह मामला केवल धरोहरों तक सीमित नहीं है, यह भारत की आस्था, अस्मिता और ऐतिहासिक उत्तरदायित्व से जुड़ा मुद्दा है। ऐसे में सरकार से आशा है कि वह इस विषय को गंभीरता से लेते हुए त्वरित कदम उठाएगी।