नंदी की तबादला एक्सप्रेस क्यों नहीं चली? विभागीय घमासान, भ्रष्टाचार के आरोप और पारदर्शिता पर उठे सवाल
नंदी की तबादला एक्सप्रेस क्यों नहीं चली? विभागीय घमासान, भ्रष्टाचार के आरोप और पारदर्शिता पर उठे सवाल
15 जून को तबादलों की तय समयसीमा खत्म हो चुकी है, लेकिन उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास विभाग में न तो तबादले हो पाए और न ही शासनादेश के अनुसार पारदर्शिता कायम रह पाई। सूत्रों के अनुसार, विभाग में तबादलों को लेकर जारी रस्साकशी ने ‘नंदी की तबादला एक्सप्रेस’ को पटरी से उतार दिया।
औद्योगिक विकास विभाग, जिसमें यूपीसीडा और राज्य की सभी विकास अथॉरिटी शामिल हैं, में लंबे समय से तैनात अधिकारियों के तबादले प्रस्तावित थे। प्रमुख सचिव आलोक कुमार ने शासनादेश के अनुरूप ऐसे अधिकारियों की सूची तैयार की थी जो समूह ‘क’ से लेकर ‘ग’ तक के अधिकारी थे और वर्षों से एक ही पद पर जमे थे। उद्देश्य था—स्थानांतरण नीति का अनुपालन और प्रशासनिक पारदर्शिता।
प्रमुख सचिव की मंशा साफ थी कि जो अधिकारी 10 या 15 वर्षों से एक ही स्थान पर जमे हैं, उन्हें हटाकर कार्यक्षमता और पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए। उन्होंने इस सूची को विभागीय मंत्री के पास अनुमोदन के लिए भेजा। लेकिन यहीं से विवाद की शुरुआत हुई।
विभागीय मंत्री नंद गोपाल गुप्ता ‘नंदी’ ने प्रमुख सचिव द्वारा भेजी गई सूची को न सिर्फ खारिज कर दिया बल्कि अपनी अलग सूची तैयार कर वापस विभाग को भेज दी। इस सूची में करीब 110 अधिकारियों के नाम शामिल थे। आरोप है कि यह सूची नंदी के कैंप ऑफिस में तैयार की गई और इसमें शासनादेश की स्पष्ट अनदेखी की गई। इसमें उन अधिकारियों को तरजीह दी गई, जिनके तबादले नियमों के विरुद्ध थे।
‘यूपी की बात’ के सूत्रों की मानें तो इस सूची में भारी भ्रष्टाचार हुआ है। कई अथॉरिटी के अधिकारियों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि सूची में धन उगाही का खेल चला है। प्रमुख सचिव आलोक कुमार ने नंदी की सूची को यह कहकर मानने से इंकार कर दिया कि यह शासनादेश के खिलाफ है और इससे प्रशासनिक निष्पक्षता प्रभावित होगी।
इस गतिरोध की स्थिति में प्रमुख सचिव ने समूचे घटनाक्रम को मुख्यमंत्री कार्यालय को सूचित कर दिया है। इससे यह साफ है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तबादलों को लेकर पारदर्शिता की नीति पर उनके ही मंत्री सवाल खड़े कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री बार-बार यह निर्देश देते आए हैं कि तबादले भ्रष्टाचार मुक्त और निष्पक्ष तरीके से किए जाएं, लेकिन विभागीय मंत्री की ओर से तैयार सूची ने न केवल इस दिशा में अड़चनें पैदा कीं, बल्कि योगी सरकार की छवि को भी प्रभावित किया है।
अब सबकी निगाहें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर टिकी हैं—क्या वे इस मुद्दे पर कड़ा कदम उठाएंगे या यह मामला भी राजनीतिक खींचतान और अंदरूनी रसूख के चलते ठंडे बस्ते में चला जाएगा?