उत्तर प्रदेश सरकार ने ऊर्जा क्षेत्र में एक बड़ी पहल करते हुए राज्य को बिजली के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में 1600 मेगावाट की नई तापीय विद्युत परियोजना को मंजूरी दी है। इस परियोजना से प्रदेश को 1500 मेगावाट सस्ती और स्थायी बिजली उपलब्ध होगी। यह परियोजना वर्ष 2030-31 तक कमीशन की जाएगी और इससे राज्य की बिजली जरूरतों को लंबे समय तक संतुलित रखने में मदद मिलेगी।
यह परियोजना DBFOO (Design, Build, Finance, Own & Operate) मॉडल पर आधारित होगी। इस मॉडल में परियोजना की जिम्मेदारी पूरी तरह से निजी कंपनी की होगी। कंपनी को जमीन, पानी और पर्यावरणीय मंजूरी की व्यवस्था स्वयं करनी होगी। सरकार केवल कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित करेगी। इस मॉडल के जरिए राज्य सरकार को अतिरिक्त वित्तीय दबाव से राहत मिलेगी और बिजली की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकेगी।
सरकार द्वारा बुलाई गई बोली प्रक्रिया में अडानी पावर लिमिटेड ने सबसे कम टैरिफ— 5.383 रुपये प्रति यूनिट—प्रस्तावित किया था। बाद में वार्ता के दौरान यह दर घटाकर 3.727 रुपये फिक्स्ड चार्ज और 1.656 रुपये फ्यूल चार्ज प्रति यूनिट तय की गई, जिससे उत्तर प्रदेश सरकार को 25 वर्षों में लगभग 2958 करोड़ रुपये की बचत होगी।
उल्लेखनीय है कि वर्तमान में राज्य की कई परियोजनाओं की दरें इससे कहीं अधिक हैं। उदाहरण के तौर पर, ललितपुर परियोजना की मौजूदा दर 5.503 रुपये प्रति यूनिट है, जो वर्ष 2030-31 तक 6.831 रुपये तक पहुंच जाएगी। सार्वजनिक क्षेत्र की जवाहरपुर, ओबरा, घाटमपुर और पनकी जैसी परियोजनाओं की दरें भी 6 से 9 रुपये प्रति यूनिट के बीच हैं।
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2033-34 तक उत्तर प्रदेश को 10,795 मेगावाट अतिरिक्त तापीय ऊर्जा की जरूरत होगी। इसके साथ ही सरकार ने 23,500 मेगावाट की अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं का भी रोडमैप तैयार किया है, जिसमें सौर, पवन और जलविद्युत परियोजनाएं शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (UPERC) ने पहले ही चेतावनी दी थी कि 2029-30 के बाद प्रदेश में 24 घंटे बिजली आपूर्ति कर पाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। ऐसे में यह नई तापीय परियोजना भविष्य की जरूरतों को देखते हुए एक रणनीतिक और दूरदर्शी कदम मानी जा रही है।