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UP News: उत्तर प्रदेश औद्योगिक भूखंड सर्वेक्षण के तहत निष्कर्ष, चुनौतियाँ और सुझाव

यूपी औद्योगिक विकास विभाग (Invest UP) द्वारा राज्य के सात प्रमुख औद्योगिक प्राधिकरणों यूपीएसिडीए, गोरखपुर औद्योगिक प्राधिकरण, सतरिया औद्योगिक प्राधिकरण, यूपी एक्सप्रेसवे अथॉरिटी) के कुल 33,493 औद्योगिक भूखंडों का सर्वेक्षण किया गया है।

By: Abhinav Tiwari  RNI News Network
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UP News: उत्तर प्रदेश औद्योगिक भूखंड सर्वेक्षण के तहत निष्कर्ष, चुनौतियाँ और सुझाव

यूपी औद्योगिक विकास विभाग (Invest UP) द्वारा राज्य के सात प्रमुख औद्योगिक प्राधिकरणों (नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना एक्सप्रेसवे (YEIDA), यूपीएसिडीए, गोरखपुर औद्योगिक प्राधिकरण, सतरिया औद्योगिक प्राधिकरण, यूपी एक्सप्रेसवे अथॉरिटी) के कुल 33,493 औद्योगिक भूखंडों का सर्वेक्षण किया गया है। इनमें से लगभग 8,235 भूखंड (करीब 25%) वर्तमान में औद्योगिक उपयोग के लिए खाली पाए गए। वर्तमान में सर्वेक्षण लगभग 77% तक पूरा हो चुका है (Invest UP के हवाले से)।

इस सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य ये पता लगाना है कि आवंटित भूमि पर कितनी इकाइयाँ चालू हैं, कितनी निर्माणाधीन हैं और कितनी निष्क्रिय/खाली पड़ी हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस दिशा में ‘लैंड बैंक’ या डिजिटल डेटाबेस तैयार करने की योजना बनाई है, जिसमें सभी औद्योगिक प्राधिकरणों के कार्यशील व निष्क्रिय इकाइयों के साथ-साथ खाली भूखंडों की जानकारी संकलित की जाएगी। सरकार का मानना है कि यह पारदर्शी डेटाबेस निवेशकों को भूमि उपलब्धता की स्थिति बताने के साथ-साथ नीतिगत निर्णयों में भी सहायक होगा।

तालिका/चार्ट सुझाव: उपरोक्त आँकड़ों को समेकित रूप से दिखाने के लिए एक तुलनात्मक तालिका या स्तंभ चार्ट तैयार किया जा सकता है, जिसमें प्रत्येक औद्योगिक प्राधिकरण के कुल भूखंड, संचालित, निर्माणाधीन व खाली भूखंडों की संख्याएँ दर्शाई जाएँ।

प्रमुख क्षेत्रों में भूखंडों की स्थिति

सर्वेक्षण के मुताबिक क्षेत्रवार खाली भूखंडों की स्थिति असमान है। नोएडा औद्योगिक क्षेत्र में लगभग 6% ही भूखंड खाली हैं, अर्थात् वहाँ अधिकांश भूखंडों का उपयोग हो रहा है। ग्रेटर नोएडा में कुल 2,677 भूखंडों में से करीब 16% खाली हैं। जबकि यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक प्राधिकरण (YEIDA) के 3,476 भूखंडों में से अभूतपूर्व 94% (3,264 भूखंड) वर्तमान में खाली पाये गए। यहीं, केवल 8 भूखंडों पर ही उद्योग संचालित हैं और 198 पर निर्माणाधीन स्थिति है।

इन आँकड़ों से स्पष्ट है कि नोएडा का औद्योगिक विस्तार अपेक्षाकृत संतुलित है, जबकि यमुना औद्योगिक क्षेत्र में भूखंड उपयोग अत्यंत न्यूनतम है। ग्रेटर नोएडा में विकास नोएडा की तुलना में धीमा है, इसमें पुरानी परियोजनाओं के वित्तीय अड़चन और कानूनी विवाद एक बड़ी वजह बताई गई है।

अन्य औद्योगिक प्राधिकरणों में भी खाली भूखंडों की स्थिति सामान्य है। पूरे प्रदेश में सर्वेक्षण के दौरान 51% भूखंड संचालित इकाइयों द्वारा उपयोग में पाए गए, 15% निष्क्रिय पाए गए, और 25% खाली हैं। उदाहरण के लिए यूपीएसिडीए के अंतर्गत 18,362 भूखंडों में से 20% खाली हैं। इससे स्पष्ट होता है कि औद्योगिक भूमि आवंटन के बाद भी पर्याप्त उपयोग नहीं हो पा रहा है।

इसके अतिरिक्त, ग्रामीण इलाकों में स्थित औद्योगिक क्षेत्रों जैसे उन्नाव के बिघापुर इत्यादि में भी भूखंडों के निष्क्रिय रहने की सूचनाएँ मिल रही हैं। हालांकि इनके विस्तृत आँकड़े अभी संकलित किए जा रहे हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर निवेशकों को औद्योगिक भूमि न मिलने या अधूरी सुविधाएँ मिलने की समस्या उभर कर आई है।

उद्योगों की स्थापना में बाधाएँ: आँकड़े और कारण

कई मामलों में भूखंडों का आवंटन होने के बाद भी औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित नहीं हो पा रही हैं। निवेशकों द्वारा संकलित कराई गई शिकायतों और सर्वेक्षण में सामने आए तथ्यों से ऐसा अनुमानित है कि प्रमुख कारणों में बुनियादी ढाँचे की कमी, अधूरे कानूनी निर्णय और वित्तीय समस्याएँ शामिल हैं। उदाहरणस्वरूप, यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक क्षेत्र के सर्वे में पाया गया कि आवंटित 3,476 भूखंडों में से 3,264 खाली हैं। कई निवेशकों ने सड़क, बिजली, पेयजल पाइपलाइन तथा सीवरेज जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी को उद्योग स्थापना में अवरोध बताया है।

यहीं, YEIDA के सेक्टर 32 और 33 में ज्यादातर भूखंड एमएसएमई (लघु-मझोले उद्योग) के लिए आरक्षित हैं, लेकिन वहाँ उद्योग शुरू नहीं हो पाने का कारण निवेशक इनfrastrukture उपलब्ध न होने का हवाला दे रहे हैं। सूचना अनुसार, गारमेंट्स पार्क एवं टाई पार्क जैसी योजनाओं में भी अनेक भूखंड खाली हैं और अभी तक एक भी इकाई चालू नहीं हुई है। प्राधिकरण का दावा है कि दिसंबर तक 100 इकाइयाँ चालू हो जाएँगी, इसके लिए नोटिस जारी किए जा चुके हैं।

इसी प्रकार, ग्रेटर नोएडा में लगभग 1,624 भूखंडों पर उद्योग संचालित हैं, 311 निर्माणाधीन और 326 निष्क्रिय (non-functional) पाए गए। नोएडा में 7,742 में से 5,308 भूखंडों पर उद्योग काम कर रहे हैं, 497 खाली और 802 पर निर्माण कार्य चल रहा है। इन आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि निवेशक आर्थिक रूप से स्थिर या आकर्षक क्षेत्रों (जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, आईटी, टेक्सटाइल) में भूमि का उपयोग कर रहे हैं, जबकि अन्य क्षेत्रों में योजनाएँ अधर में लटकी हुई हैं।

कुल मिलाकर, कई भूखंडों पर वर्षों तक कोई निर्माण शुरू नहीं होने के कारण सरकार अब inactive plots को पुनः रद्द करने पर विचार कर रही है। राज्य अधिकारियों की मानें तो “बहुत से भूखंड सालों पहले आवंटित हुए, लेकिन आवंटियों ने निर्माण कार्य प्रारंभ नहीं किया”। औद्योगिक जमीन लेने पर निर्माण न करने की प्रवृत्ति को रोकने के लिए भूमि वापसी की प्रक्रिया तेज की जा रही है।

सर्वेक्षण की आवश्यकता और सरकार की मंशा

सरकार का यह सर्वेक्षण औद्योगिक भूखंडों के समग्र उपयोग पर वास्तविक चित्र प्रस्तुत करने एवं भूमि नीति को प्रभावी बनाने के उद्देश्य से है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर Invest UP को राज्य के सभी बड़े औद्योगिक प्राधिकरणों में भूमि उपयोग का “सत्यापित डिजिटल डेटाबेस” तैयार करने का काम सौंपा गया है। इससे औद्योगिक भूमि आवंटन और उसके बाद उपयोग की स्थिति पारदर्शी होगी। एक अखबार रिपोर्ट के अनुसार, राज्यभर में सर्वे पूरा होने पर 51% भूखंड कार्यरत इकाइयों के पास, 25% खाली और 15% निष्क्रिय पाए गए।

सर्वेक्षण Invest UP और निजी तकनीकी संस्थाओं (जैसे Ramtek Software) की साझेदारी से ‘निवेश मित्र’ पोर्टल के माध्यम से किया जा रहा है। इसमें भूखंडों की GPS टैगिंग, आवंटित इकाइयों के रजिस्ट्रेशन (GST, MSME, CIN) सहित विस्तृत डिटेल एकत्रित की जा रही है। सरकार का मानना है कि इस डेटाबेस से निवेशकों को आसानी से भूमि की उपलब्धता का ज्ञान होगा, जो उद्योग लगाने में सहायता करेगा।

इसके अतिरिक्त, सरकार ने औद्योगिक निवेश को बढ़ावा देने के लिए कई नीतिगत उपाय भी किए हैं। उदाहरण के लिए, 100 करोड़ रुपये से ऊपर के निवेश प्रस्तावों को केवल 15 दिनों में भूमि उपलब्ध कराने की घोषणा की गई। इस तरह का समयबद्ध आवंटन प्रणाली बड़े निवेशकों को तेज़ी से उद्योग शुरू करने में सक्षम बनाएगी। नीति निर्माता एक-ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए निर्माणाधीन भूखंडों को रद्द कर पुनः नए निवेश लाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।

भूखंड रद्दीकरण और संभावित सामाजिक-आर्थिक प्रभाव

सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि लंबे समय से निष्क्रिय पड़े उद्योग भूखंडों का आवंटन रद्द किया जा सकता है। अपर मुख्य सचिव (आवस्टान एवं औद्योगिक विकास) आलोक कुमार ने सभी औद्योगिक प्राधिकरणों को “दो साल से अधिक समय तक निर्माण शुरू न करने वाले निवेशकों” की पहचान कर एक महीने के भीतर निर्माण शुरू करने हेतु निर्देश दिया है, अन्यथा भूखंड आवंटन रद्द किया जाएगा। स्थानीय अधिकारियों ने भी चेतावनी जारी की है कि यदि जल्द औद्योगिक गतिविधियाँ प्रारंभ नहीं हुईं तो ऐसे भूखंडों का आवंटन रद्द कर उन्हें दोबारा उद्योगों को उपलब्ध कराया जाएगा।

भविष्य में उद्योग भूखंडों की वापसी एवं पुनः आवंटन से रोजगार सृजन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। राज्य सरकार की योजना नए उद्योगों (विशेषकर सौर, डेटा सेंटर, लॉजिस्टिक्स, आईटी व खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्रों में) को प्रोत्साहित करने की है। यदि खाली पड़े भूखंडों पर नए उद्योग स्थापित हुए तो नए रोज़गार पैदा होंगे और क्षेत्र की आर्थिक गतिविधि में वृद्धि होगी।

हालांकि, भूमि वापसी की कार्रवाई से कुछ सामाजिक-आर्थिक चुनौतियाँ भी जुड़ी हैं। जिन निवेशकों को भूखंड आवंटित हुआ था, उन्हें अब भूमि पर काम के लिए बड़ा दबाव महसूस हो सकता है। रद्दीकरण का डर सताए उद्योगों के लिए अनिश्चितता और कानूनी अड़चनें उत्पन्न कर सकता है। इसके अलावा, यदि उद्योग योजनाएं अचानक बदलती हैं तो श्रमिकों या छोटे उद्यमों पर असर पड़ सकता है। इसलिए नीति-निर्माताओं को निर्णय लेते समय संतुलन बनाते हुए आर्थिक लाभ और सामाजिक प्रभाव दोनों का ध्यान रखना होगा।

विभिन्न वर्गों के दृष्टिकोण

इस पूरे मामले में आम नागरिक का नजरिया मुख्य रूप से रोजगार और विकास से जुड़ा है। यदि खाली पड़े भूखंडों पर उद्योग लगेंगे, तो स्थानीय स्तर पर लाखों रोजगार सृजित हो सकते हैं, जिससे सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधरने की उम्मीद है। दूसरी ओर, कुछ नागरिकों में चिंता भी है कि औद्योगीकरण से पर्यावरणीय नुकसान या भूमिहीनों के विस्थापन जैसा न हो; लेकिन सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि शत्रु संपत्तियों और नजूल (राज्य) भूमि का अधिकतम सदुपयोग उद्योगों के लिए किया जाएगा, जिससे किसान-मजदूर को उचित मुआवजा मिल सकेगा।

निवेशक वर्ग की दृष्टि से देखा जाए तो स्पष्ट एवं शीघ्र भूमि आवंटन की व्यवस्था स्वागत योग्य है। बड़ी परियोजनाओं के लिए 15 दिन में भूमि उपलब्ध कराने और निवेश-मित्र पोर्टल पर भूमि बैंक डाटा उपलब्ध कराने से निवेशकों को सुविधा मिलेगी। आवंटन और निर्माण प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ने पर उनका भरोसा बढ़ेगा। हालांकि, कुछ निवेशक रद्दीकरण की चेतावनी से चिंतित हो सकते हैं; इसलिए उन्हें निष्क्रिय भूखंड मुक्त कर बड़े निवेशों के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

नीति-निर्माता का दृष्टिकोण दीर्घकालिक आर्थिक लक्ष्यों पर केंद्रित है। उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नीति की दिशा में एक-ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बनाने, ग्लोबल निवेश रैंकिंग सुधारने और प्रदेश को औद्योगिक हब बनाने का लक्ष्य है। इसके लिए भूखंड का दक्षतापूर्वक उपयोग सुनिश्चित करना आवश्यक है। उन्होंने सर्वे, डिजिटल डेटाबेस और भूमि बैंक तैयार कर इन लक्ष्यों को हासिल करने की योजना बनाई है। इस प्रकार के सर्वे से नीतिगत निर्णयों में मदद मिलेगी और औद्योगिक विकास के ब्लॉक्स स्पष्ट होंगे।

समाधान और सुझाव

खाली पड़े औद्योगिक भूखंडों की समस्या से निपटने के लिए कई सुधारात्मक कदम उठाए जा रहे हैं और आगे भी उठाए जा सकते हैं:

भूमि बैंक डेटाबेस एवं मोबाइल ऐप: सरकार ने सभी औद्योगिक प्राधिकरणों के भूखंडों का “भूमि बैंक” तैयार करने का काम शुरू किया है। निवेश प्रस्ताव पर संबंधित ज़िले में उपलब्ध भूमि की सूची तत्काल निवेशक को उपलब्ध कराई जाएगी, जिससे उन्हें बार-बार विभागीय चक्कर नहीं लगाने होंगे। साथ ही, मोबाइल एप्लीकेशन द्वारा यह डेटाबेस सार्वजनिक कर दिया जाएगा ताकि कोई भी निवेशक या उद्योगपति भूखंडों की स्थिति देख सके।

यूनिफाइड भवन बायलॉज: सभी औद्योगिक प्राधिकरणों में एक समान भवन नियम लागू किए गए हैं। इससे भूखंडों पर इमारत अनुमोदन, नक्शा पासिंग इत्यादि प्रक्रियाएँ सरल होंगी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। उद्यमियों का समय और धन दोनों बचेगा, जिससे उद्योग शुरू करने की प्रक्रिया में तेजी आएगी।

शीघ्र भूमि आवंटन: बड़े निवेश प्रस्तावों को भूमि आवंटन में और तेज़ी लाई जा रही है। सरकार ने घोषणा की है कि 100 करोड़ रुपये से ऊपर के निवेश प्रस्तावों को केवल 15 दिनों में आवश्यक भूमि दी जाएगी। इससे न केवल निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा, बल्कि समय पर उद्योग शुरू होने से अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा।

क्षेत्र-विशेष लैंड बैंक: उभरते हुए क्षेत्रों जैसे सौर ऊर्जा उत्पादन, डेटा सेंटर, लॉजिस्टिक्स, आईटी/आईटीईएस और खाद्य प्रसंस्करण के लिए क्षेत्र-विशेष भूखंड-भंडार (लैंड बैंक) तैयार करने पर जोर दिया गया है। इससे इन क्षेत्रों में भूखंडों की उपलब्धता सुनिश्चित होगी और आकर्षक निवेश लाने में आसानी होगी।

नियमित डेटा अपडेट: राज्य में 25,000 एकड़ से अधिक भूखंडों को लैंड बैंक में शामिल किया गया है। सरकार ने यह प्रस्ताव भी रखा है कि इस भूखंड डेटाबेस को मासिक आधार पर अपडेट किया जाए। इससे सभी हितधारकों को भूमि की उपलब्धता की नवीनतम जानकारी मिल सकेगी।

औद्योगिक योजनाओं का पुनरीक्षण: यह भी आवश्यक है कि खाली पड़े भूखंडों की पहचान हो और उन पर उद्योग स्थापित करने के लिए निवेशकों को आकर्षित किया जाए। सरकार ने कार्रवाई करते हुए पिछले वर्षों में निष्क्रिय पड़े भूखंडों के आवंटन रद्द करने पर बल दिया है। साथ ही, प्रदेश के विभिन्न औद्योगिक क्षेत्र जैसे बिघापुर (उन्नाव) एवं अन्य में ईज ऑफ़ डूइंग बिज़नेस बढ़ाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार करने के निर्देश हैं।

इन समाधानों से स्पष्ट होगा कि प्रदेश भूमि उपयोग को तीव्र करने, पारदर्शिता बढ़ाने और निवेश आकर्षित करने की दिशा में प्रयासरत है। निवेशकों के लिए प्रस्तावों को संपूर्ण रूप से सामने रखने, सुविधाजनक कार्यान्वयन और समयबद्ध अनुमोदन से उद्योगों की स्थापना में तेजी आएगी।

औद्योगिक प्राधिकरणों की भूमिका

उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास में औद्योगिक प्राधिकरण और UPSIDC की भूमिका अहम है। नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना एक्सप्रेसवे, गोरखपुर, सतरिया, लखनऊ, यूपी एक्सप्रेसवे सहित राज्य सरकार द्वारा स्थापित औद्योगिक प्राधिकरण (यूपीएसिडीसी/यूपीएसिडा) ने ही कुल 33,493 भूखंडों का आवंटन किया था। इन प्राधिकरणों को अब यह सुनिश्चित करना है कि आवंटित भूखंडों का उपयोग हो और जो भूखंड निष्क्रिय हों, उन पर नियमानुसार कार्यवाही हो।

प्राधिकरणों को आवश्यक बुनियादी ढाँचा (सड़क, बिजली, जल, सीवरेज) मुहैया कराना होगा, जिससे निवेशकों को उद्योग स्थापित करने में आसानी हो। उदाहरण के लिए यीडा प्राधिकरण ने बुनियादी सुविधाएँ न मिलने की बात स्वीकार की है; ऐसी स्थिति में उन्हें अपने ढांचे को मजबूत करना होगा। इसके अलावा, सभी प्राधिकरणों ने निर्देशित किया गया है कि बिना निर्माण के उद्योग भूखंडों का आवंटन रद्द करने तथा भूखंडों को नए निवेशकों को उपलब्ध कराने की प्रक्रिया को तेज करें।

इन्हें अपने-अपने क्षेत्र में “प्लॉट स्कीम” जारी करने और निवेशकों को एक-खिड़की सुविधा (Nivesh Mitra आदि) द्वारा जानकारी देने की जिम्मेदारी भी है। साथ ही, सरकार की जनहित योजनाओं के अनुरूप अधिग्रहीत भूमि (जैसे शत्रु-संपत्ति, नजूल) का विवेकपूर्ण उपयोग इंडस्ट्रियल जोन बनाने में करना होगा।

संक्षेप में, यूपी के औद्योगिक प्राधिकरण और UPSIDC को प्रदेश की औद्योगिक नीति के लक्ष्यों को साकार करने में सहयोग करना है। उन्हें निवेशकों को आकर्षित करने के लिए निर्बाध भूमि आवंटन, पारदर्शी जानकारी और समयबद्ध निर्णय सुनिश्चित करने होंगे।

स्रोत: सभी आंकड़े और नीतिगत जानकारी Invest UP द्वारा कराए जा रहे औद्योगिक भूखंड सर्वेक्षण, और सरकारी घोषणाओं पर आधारित समाचार स्रोतों से ली गई हैं।

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