उत्तर प्रदेश द्वारा श्वानवंशीय पशुओं (कुत्तों) के प्रभावी प्रबंधन एवं क्षमता निर्माण के उद्देश्य से एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह कार्यशाला स्थानीय नगरीय निकाय निदेशालय में आयोजित हुई, जिसकी अध्यक्षता विभाग के प्रमुख सचिव अमृत अभिजात ने की।
इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य प्रदेश में संचालित एबीसी (Animal Birth Control) केन्द्रों की कार्यप्रणाली को और अधिक प्रभावी बनाना तथा अधिकारियों को तकनीकी और व्यावहारिक जानकारी प्रदान करना था। इसमें अपर नगर आयुक्त, पशु कल्याण अधिकारी, मुख्य पशु कल्याण अधिकारी सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों ने प्रतिभाग किया।
प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभागियों ने लखनऊ स्थित एबीसी केन्द्र का फील्ड विज़िट किया। यहां उन्होंने सामुदायिक केनेल, व्यक्तिगत केनेल, ऑपरेशन थिएटर, भोजन प्रबंधन प्रणाली और अन्य संचालन प्रक्रियाओं को प्रत्यक्ष रूप से देखा। विशेषज्ञों ने आवारा कुत्तों को पकड़ने से लेकर नसबंदी (बध्याकरण) और बाद की देखभाल तक की संपूर्ण प्रक्रिया का प्रदर्शन किया।
कार्यशाला के दूसरे सत्र में राज्य एबीसी मॉनिटरिंग समिति की सदस्य एवं ह्यूमेन वर्ल्ड फॉर एनिमल्स की सुश्री गौरी मौलेकही ने डॉग पॉपुलेशन मैनेजमेंट पर विस्तृत प्रस्तुति दी। उन्होंने विधिक प्रावधानों, नगरीय निकायों की जिम्मेदारियों, कार्यान्वयन एजेंसियों की भूमिका, मानवीय तरीके से कुत्तों को पकड़ने की प्रक्रिया, अभिलेख संधारण, पारदर्शिता, शिकायत निस्तारण प्रणाली, रेबीज़ प्रोटोकॉल, इच्छामृत्यु और अंगों के सुरक्षित निस्तारण से संबंधित विषयों पर विस्तार से चर्चा की।
उत्तर प्रदेश सरकार ने श्वान जनसंख्या नियंत्रण एवं प्रबंधन के क्षेत्र में कई अग्रणी पहलें की हैं। अब तक प्रदेश में 17 स्थायी एबीसी केन्द्र स्थापित किए जा चुके हैं, वहीं लखनऊ और गाजियाबाद में 2 अतिरिक्त केन्द्रों की स्वीकृति दी गई है। इस दिशा में ₹3,273.65 लाख की बड़ी धनराशि आवंटित की गई है।
इसके अतिरिक्त, पेट लाइसेंसिंग एवं रेगुलेशन की पहल भी लागू की गई है। इसमें सभी पालतू कुत्तों का पंजीकरण, टीकाकरण और नसबंदी अनिवार्य कर दी गई है। केवल वही ब्रीडर और विक्रेता जो राज्य पशु कल्याण बोर्ड में पंजीकृत हैं, उन्हें ही व्यापारिक लाइसेंस दिए जा रहे हैं। बिना पंजीकरण वाले पालतू पशु दुकानों और ब्रीडरों को बंद करने का प्रावधान है।
सरकार ने विद्यालयों, रेज़िडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों (RWAs) और सार्वजनिक स्थलों पर भी जागरूकता अभियान अनिवार्य किया है। इसका उद्देश्य कुत्तों के काटने की घटनाओं को रोकना और नसबंदी व टीकाकरण के लाभों को समाज तक पहुँचाना है। साथ ही, नगरीय निकायों को मासिक डॉग-बाइट डेटा प्रकाशित करने, एनीमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया की मान्यता प्रमाणपत्र प्रदर्शित करने तथा शिकायत निस्तारण के लिए हेल्पलाइन उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए हैं।
इस अवसर पर प्रमुख सचिव अमृत अभिजात ने कहा –
“नगर विकास विभाग उत्तर प्रदेश में आवारा कुत्तों के प्रबंधन के लिए टिकाऊ और मानवीय समाधान विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह कार्यशाला हमारे अधिकारियों को एबीसी केन्द्रों के संचालन हेतु आवश्यक कौशल प्रदान करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। नगरीय निकायों, पशु कल्याण संस्थाओं और विशेषज्ञों के सहयोग से हम अपने शहरों को निवासियों और पशुओं दोनों के लिए सुरक्षित और संवेदनशील बनाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने सभी नगरीय निकायों से आग्रह किया कि वे कार्यशाला से प्राप्त शिक्षाओं को लागू करें, सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाएँ और प्रभावी मॉनिटरिंग व्यवस्था सुनिश्चित करें।