मथुरा जेल की महिला बंदियों ने इस रक्षाबंधन को खास बनाने का बीड़ा उठाया है। सृजनात्मकता और आत्मबल से भरपूर इन महिलाओं ने जैविक सामग्री से ऐसी राखियां तैयार की हैं, जो न केवल भाई-बहन के प्रेम को दर्शाएंगी, बल्कि पर्यावरण की रक्षा में भी सहायक बनेंगी। इन विशेष राखियों को बीज, सूखे फूल, रंगीन धागों और चमकते मोतियों से सजाया गया है। राखी के त्यौहार के बाद इन्हें जमीन में बोया जा सकता है, जिससे पौधे उगेंगे और हरियाली को बढ़ावा मिलेगा।
इस प्रेरणादायी प्रयास के लिए महिला बंदियों को खजानी वेलफेयर सोसाइटी द्वारा विशेष प्रशिक्षण दिया गया है। प्रशिक्षण के दौरान जैपनिज तकनीक से क्रोशिया के उपयोग को प्राथमिकता दी गई, जिसे महिला बंदियां बड़ी रुचि से सीख रही हैं। इसके अलावा मशीनों और अन्य जैविक सामग्रियों की सहायता से भी विभिन्न डिजाइन की राखियां तैयार की जा रही हैं।
इन राखियों को मथुरा जेल परिसर के बाहर स्टॉल लगाकर बिक्री के लिए प्रस्तुत किया जाएगा। इस पहल से बंदियों को एक नई पहचान मिलेगी और समाज में उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।
जेल अधीक्षक अंशुमन गर्ग ने बताया कि यह पहल महिला बंदियों को दंड के बजाय पुनर्वास और आत्मनिर्भरता की ओर प्रेरित करने की सोच का हिस्सा है। सभी महिला बंदियों को निशुल्क प्रशिक्षण और आवश्यक सामग्री प्रदान की गई है।
रक्षाबंधन जैसे पारंपरिक पर्व को पर्यावरण संरक्षण से जोड़कर मथुरा जेल की महिला बंदियों ने नवाचार और आत्मनिर्भरता की एक मिसाल कायम की है। यह पहल नारी शक्ति और सतत विकास का सशक्त प्रतीक बनकर उभर रही है।