गोरखपुर में मानसून की दस्तक के साथ ही बाढ़ का खतरा गहराता जा रहा है। जिले के बाढ़ खंड दो के अंतर्गत आने वाले सिक्टोर तटबंध की स्थिति गंभीर बनी हुई है। तटबंध पर ठोकर निर्माण का कार्य अब तक 30 प्रतिशत भी पूरा नहीं हो सका है। समय पर काम पूरा न होना ठेकेदारों के मनमाने रवैये और सिंचाई विभाग, विशेषकर गंडक चीफ की लापरवाही को उजागर करता है। इसका खामियाजा इस बार भी किसानों और स्थानीय निवासियों को भुगतना पड़ सकता है, क्योंकि समय रहते मरम्मत और निर्माण कार्य न होने से सैकड़ों एकड़ उपजाऊ भूमि बाढ़ की चपेट में आ सकती है।
गोरखपुर में राप्ती और रोहिणी नदियों का हर साल बरसात के मौसम में विकराल रूप देखने को मिलता है। सिंचाई विभाग को पहले से चेतावनी दी जाती रही है कि मानसून से पूर्व तटबंधों की मरम्मत और ठोकरों का निर्माण पूर्ण कर लिया जाए, ताकि बाढ़ से होने वाले नुकसान को रोका जा सके। इसके बावजूद सिक्टोर बंधे की मरम्मत अधूरी है, और कई स्थानों पर तो बंधों में बड़े-बड़े गड्ढे बन चुके हैं। विभाग ने कहीं-कहीं सिर्फ बोल्डर डालकर अधूरा काम शुरू कर दिया है, जो सिर्फ खानापूर्ति नजर आ रही है।
स्थानीय ग्रामीणों की मानें तो यह क्षेत्र हर साल बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित होता है, जिससे खेतों की फसल बर्बाद हो जाती है और घरों में पानी भर जाता है। यदि समय रहते विभाग ने कार्यों को पूर्ण किया होता तो इस बार राहत मिल सकती थी, लेकिन शासन द्वारा आवंटित धन और निर्धारित मानकों को ताक पर रखकर विभाग ने निष्क्रियता दिखाई है।
नेपाल द्वारा जुलाई के पहले सप्ताह में लाखों क्यूसेक पानी छोड़े जाने की संभावना है, जिससे गोरखपुर और आसपास के इलाकों में बाढ़ की आशंका और अधिक बढ़ गई है। ऐसे में सिंचाई विभाग की आधी-अधूरी तैयारियां चिंता का विषय बन गई हैं। किसानों के लिए जहां बारिश उम्मीद की किरण लेकर आती है, वहीं तटबंध किनारे रहने वाले लोगों के लिए यह भय का कारण बन रही है।
हालात ऐसे हैं कि पीटीसी प्रदीप आनंद श्रीवास्तव ने भी तटबंध की स्थिति को लेकर चेतावनी दी है और विभागीय लापरवाही पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि यदि जल्द सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो इस बार की बाढ़ और अधिक विनाशकारी हो सकती है।