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Basti : खाद के लिए रो रहा अन्नदाता, अधिकारियों की मर गई संवेदना!

Basti : बस्ती जिले में किसान खाद के लिए लंबी लाइनों में खड़े होने को मजबूर हैं। परशुरामपुर में खाद की भारी किल्लत से किसान रो रहे हैं, जबकि अधिकारी कागज़ों में पर्याप्त आपूर्ति के दावे कर रहे हैं।

By: Desk Team  RNI News Network
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Basti : खाद के लिए रो रहा अन्नदाता, अधिकारियों की मर गई संवेदना!

Basti : देश का अन्नदाता इस समय रोने को मजबूर है, सरकार के सारे दावों की पोल खोलते हुए एक तस्वीर देख कर आपको भी रोना आ जाएगा, खेतों में दिन रात काम कर अनाज पैदा करने करने वाला किसान खाद के लिए लाइन में लगा है, और इसके बाद भी जब उसे कई कई घंटे तक खाद नहीं मिल पा रही तो उसके आंखों से आंसू निकल पड़ रहे। बस्ती के परशुरामपुर थाना क्षेत्र के गोपीनाथपुर खाद के सेंटर पर खाद के लगी किसानों की लंबी लाइन इस बात की गवाही है कि फाइलों में अधिकारियों का दावा जमीन पर कितना सही साबित हो रहा है। किसान परेशान है और रो रो अपनी व्यथा सुना रहा है, और जिम्मेदार अधिकारी कह रहे है हमारे आंकड़ों में खाद की कोई समस्या नहीं है, आलम ये है कि इस बार खाद की आवक दो गुना यानी कि 8200 मीट्रिक टन खपत हो चुकी है, जब कि पिछले साल इसके आधा 4200 मीट्रिक टन ही था फिर भी किसान खाद के लिए दर दर भटकने को मजबूर है।

वही बस्ती जो अपनी हरी-भरी धरती और खेती-किसानी के लिए जाना जाता है. लेकिन इस समय यहाँ के किसान बदहाल हैं. खरीफ की फसल का समय है और खरीफ फसलों जैसे धान, मक्का, गन्ना के लिए यूरिया और डीएपी खाद की सख्त जरूरत है. लेकिन खाद की किल्लत ने किसानों को परेशान कर रखा है. जिले के खाद सेंटरों पर किसानों की लंबी-लंबी कतारें लगी हैं, लेकिन खाद नदारद है. कई घंटों से इंतजार कर रहे किसान खाली हाथ लौट रहे हैं. कहीं-कहीं तो स्थिति इतनी खराब है कि महिला किसान भी अपने बच्चों को लेकर लाइन में लगने को मजबूर हैं.

 

परशुरामपुर के गोपीनाथ खाद केंद्र पर एक किसान ने रोते हुए बताया कि “फसल सूख रही है, खाद नहीं मिल रही. अगर इस बार फसल बर्बाद हो गई तो हम क्या करेंगे?” उनकी आँखों में दिख रहा दर्द सिर्फ उनका नहीं, बल्कि बस्ती के हर उस किसान का है जो अपनी मेहनत से देश का पेट भरता है. कुछ और किसानों ने बताया कि “सुबह 4 बजे से लाइन में लगे हैं, लेकिन अभी तक नंबर नहीं आया. सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं और पता चला कि खाद ही खत्म हो गई है. कई किसान तो तीन-तीन दिन से लाइनों में लगकर इंतजार कर रहे हैं. उनका कहना है कि सरकारी दावे फेल हो रहे हैं.

इस किल्लत के पीछे कालाबाजारी का बड़ा हाथ बताया जा रहा है. सरकारी सेंटरों पर खाद नहीं है, लेकिन निजी दुकानों पर मनमाने दामों पर खाद बेची जा रही है. किसान मजबूरी में ऊँचे दामों पर खाद खरीदने को मजबूर हैं, जिससे उनकी लागत बढ़ रही है और मुनाफा घट रहा है. यह उन अन्नदाताओं के साथ धोखा है जो अपनी मेहनत से देश को आत्मनिर्भर बनाते हैं. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन राजेन्द्रनाथ तिवारी खुद अपने ही सरकार के अधिकारियों पर आरोप लगाते है कि खाद की तस्करी हो रही है और जिम्मेदार इसमें शामिल है, किसानों की समस्या से उन्हें कोई मतलब नहीं, दोगुना खाद की रैक आई फिर भी किसान खाद के लिए रो रहा है, इससे साबित होता है कि बड़े पैमाने पर ब्लैक मार्केटिंग हो रही है। इतना ही नहीं समितियों पर ई पास मशीन और स्टॉक रजिस्टर में कोई तालमेल नहीं है, क्यों कि केंद्रों पर किसानों को खाद ओवर रेट में दी जा रही है।

एक तरफ किसान खाद के लिए तरस रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ जिला कृषि अधिकारी बाबूराम मौर्या दावा कर रहे हैं कि जिले में खाद की कोई कमी नहीं है. उनके अनुसार, अब तक 41000 मीट्रिक टन वितरण हो चुका है, किसानों को पिछले साल की तुलना में इस साल 13000 मीट्रिक टन ज्यादा खाद दी जा चुकी है. खाद की किल्लत का ठीकरा किसानों पर ही फोड़ते हुए कृषि अधिकारी ने कहा कि गन्ने की अधिक खेती होने की वजह से किसान खाद के लाइन लगा था है, और न कही ओवर रेट की शिकायत है, लेकिन यह आँकड़ा किसानों को राहत नहीं दे रहा है क्योंकि गोदामों से खाद केंद्रों तक नहीं पहुँच रही है. जिले में खाद की उपलब्धता के दावों और जमीनी हकीकत के बीच यह बड़ा अंतर सरकार की व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है. अगर खाद आ रही है तो वह कहाँ जा रही है? क्या अधिकारी इस कालाबाजारी को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठा रहे हैं? वही जिला अधिकारी रवीश कुमार गुप्ता ने कहा कि खाद को लेकर कुछ शिकायतें आ रही है, कृषि अधिकारी को इस बारे में साफ तौर निर्देश दिया गया है, खाद की कमी को पूरा करे और किसानों को खाद के लिए कतई परेशान न होना पड़े।

यह सिर्फ खाद की कमी का मामला नहीं है, बल्कि यह किसानों के भविष्य का सवाल है. समय पर खाद न मिलने से फसल की पैदावार प्रभावित होगी, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान होगा | यह जरूरी है कि प्रशासन जल्द से जल्द इस समस्या को सुलझाए, कालाबाजारी पर लगाम लगाए और यह सुनिश्चित करे कि खाद हर जरूरतमंद किसान तक समय पर पहुँचे. तभी जाकर हमारे अन्नदाता को राहत मिलेगी और उनकी मेहनत बर्बाद होने से बचेगी |

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