उत्तर प्रदेश में मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण को लेकर उच्च न्यायालय ने बड़ा आदेश दिया है। प्रदेश में अनुसूचित जाति (एससी) को 21%, अनुसूचित जनजाति (एसटी) को 2%, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27% और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को 10% आरक्षण का प्रावधान है। हालांकि, कन्नौज, अंबेडकरनगर, जालौन और सहारनपुर में बने मेडिकल कॉलेजों के निर्माण के समय समाज कल्याण विभाग ने विशेष घटक के तहत 70% बजट दिया था, जबकि 30% सामान्य बजट के तौर पर रखा गया।
हाईकोर्ट में दायर याचिका में बताया गया कि इन कॉलेजों में हॉस्टल में एससी-एसटी छात्रों को 70% आरक्षण मिलना था। लेकिन विभागीय अधिकारियों की लापरवाही और गलत व्याख्या के कारण एमबीबीएस में दाखिले के समय एससी-एसटी छात्रों को 23% की बजाय 78% आरक्षण दे दिया गया। यह व्यवस्था कई सालों से जारी रही और इस वर्ष की काउंसलिंग में भी इसी के अनुसार सीटें आवंटित की गईं। न्यायालय ने इस कारण काउंसलिंग रद्द कर दी।
इन चार कॉलेजों में प्रत्येक में 100-100 एमबीबीएस सीटें हैं, जिनमें 15% सीटें केंद्र के कोटे के लिए आरक्षित हैं। बची 85% सीटों में 78% एससी-एसटी छात्रों को दी गई, जबकि बाकी पिछड़े और सामान्य वर्ग के छात्रों को मिलीं। खास बात यह है कि इन कॉलेजों में ईडब्ल्यूएस को एक भी सीट नहीं दी गई।
चिकित्सा शिक्षा विभाग हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दोबारा अपील की तैयारी कर रहा है। इसके लिए संबंधित कॉलेजों के निर्माण दस्तावेज जुटाए जा रहे हैं और आरक्षण के समय की शर्तों की पड़ताल की जा रही है। विभाग का कहना है कि पहले भी इसी आरक्षण व्यवस्था के तहत सीटें आवंटित होती रही हैं, इसलिए इस वर्ष भी वही प्रक्रिया अपनाई गई।
इस आदेश से सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों की सीट मैट्रिक प्रभावित हो सकती है। खाली सीटों के आवंटन में समस्याएं आने की संभावना है और काउंसलिंग प्रक्रिया में देरी हो सकती है। हाईकोर्ट के इस फैसले से आरक्षण नीति और काउंसलिंग प्रणाली पर नए सिरे से चर्चा शुरू हो जाएगी।