उत्तर प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में जल-जीवन मिशन पर चर्चा के बीच समाजवादी पार्टी (सपा) के विधायक मोहम्मद फहीम इरफ़ान ने जलशक्ति विभाग पर सवाल उठाए। उन्होंने आरोप लगाया कि योजनाएं केवल कागज़ों पर ही हैं—बहुत से गांवों में पानी नहीं पहुंच रहा, हैंडपंप हटाए जा रहे, और विकास कार्य ठेकेदारों द्वारा लक्ष्य प्रधान ढंग से नहीं किए जा रहे। यह मामला विशेष रूप से ‘हर घर जल’ परियोजना से जुड़ा मामला था।
फहीम की इस टिप्पणी पर जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह का तीखा पलटवार आया। साथ ही उन्होंने विधायक को चुनौती देते हुए कहा, “यदि आपने सच कहा है, तो अपनी बीवी की कसम लेकर सच बताएं; यदि सच साबित हो जाता है तो मैं इस्तीफा दे दूंगा।”
इस बयान ने विधानसभा में राजनीतिक तनातनी को और उभार दिया। विधायक इरफ़ान ने कहा कि कसम लेने की बजाय सत्यापन कलेक्टर स्तर पर कराना अधिक उचित होगा। वेन्यू निहित हुआ कि ऐसा निर्देशन सिर्फ विधानसभा के अध्यक्ष या सदन में नहीं बल्कि उचित जांच द्वारा सामने आ सकता है।
लेकिन इस विवाद ने विधानसभा की गरिमा को भी सवालों के घेरे में ला दिया। विपक्ष ने कहा कि यह घटना सरकार की संवेदनहीनता का उदाहरण है—जहाँ सवालों का जवाब देने की बजाय व्यक्तिगत अपील और भड़काऊ भाषा का सहारा लिया जा रहा है। वहीं कुछ राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह घटना लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हास्य और उग्रता का मिश्रण प्रस्तुत करती है, जहाँ संवैधानिक जवाबदारी से अधिक राग-द्वेष की भाषा प्रमुख हो रही है।
इस तरह की सियासी घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि लोकतांत्रिक मंच-भले ही वह विधानमंडल हो-पर व्यक्तिगत बयान, भावनात्मक भाषा और विधिव्यतिक्रम एक साथ उभरकर सियासत की रंगत को और गहरा बना देते हैं।