जब मेहनत डूब जाती है बारिश में तब सिर्फ फसलें नहीं, उम्मीदें भी बह जाती हैं और इसके साथ बह जाता है साहस। ऐसे में बुंदेलखंड का किसान आज फिर वही दर्द झेल रहा है। जहां आसमान से बरसी राहत की बूंदें आफत बन गई हैं। बता दें कि दो दिन की लगातार बारिश ने जनपद जालौन के खेतों में तबाही मचा रखी है।
धान की फसलें बर्बाद हो चुकी हैं, मटर की बुवाई सड़ चुकी है, और मेहनत की मिट्टी ने आंसुओं का सहारा ले लिया है। ऐसे में सरकार के दावों और रिपोर्टों के बीच, किसान की आँखों में सवाल है कि आखिर कब तक बस तस्वीरों में ही सुनवाई होगी और कब जमीनी स्तर पर काम होगा…?
ये तस्वीरें जालौन की है, जहां किसानों की मेहनत बेमौसम के हुई बारिश में डूब गई, और गांव की मिट्टी आज भी पानी से भीगी रो रही है। जनपद जालौन के ग्रमीण क्षेत्रों के खेतों में वो सन्नाता पसरा है, जिसे कोई भी सरकारी रिपोर्ट नहीं माप सकती। दो दिन लगातार हुई बेमौसम की बेरहम बारिश ने किसानों की सालभर की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
धान की फसल की बालियां अब मिट्टी में समा चुकी हैं, मटर की बुवाई सड़ चुकी है, और खेतों में खड़ी मेहनत अब बेबसी का मंजर बन गई है। जिसके बाद अब किसानों ने प्रसाशन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
जहां महिलाएं छत पर सूखने रखी खराब फसलें देख रही हैं, बच्चे स्कूल की जगह खेत में मदद कर रहे हैं। किसानों के इन सूने हाथों ने आसमान से बरसात मांगी थी, पर किसे पता था, यही बारिश उनकी रोटी छीन ले जाएगी।
अब किसान की आँखों में आँसू है और दिल में सवाल है कि आखिर कब तक बस फोटो खिंचवाते रहोगे, सरकार। जब किसान अधिकारियों के दर पर अपनी फरियाद लेकर पहुंचे तो अधिकारियों का कहना है कि सर्वे चल रहा है और किसानों की शिकायत जल्द ही सुलझाई जाएगी। अब सवाल ये है कि क्या सर्वे करने से किसानों को उनकी बर्बाद हुई फसल वापस मिल जाएगी, देखने वाली बात ये भी है कि किसानों की समस्याओं का प्रसाशन क्या हल निकालता है।
बुंदेलखंड में इन दिनों खेतों में सिर्फ फसलें नहीं, लोगों की उम्मीदें भी डूब गई हैं। सवाल सिर्फ मौसम का नहीं है… सवाल उस सिस्टम का है, जो हर बार किसानों के दर्द को आंकड़ों में समेट देता है। और भीगी जमीनों का दर्द मिट्टी में ही दब जाता है… फिलहाल सरकार क्या करती है ये तो समय ही बताएगा।