UP Politics : उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर करवट लेने को तैयार है। 2027 के विधानसभा चुनाव में भले अभी वक्त हो, लेकिन राजनीतिक दलों ने अभी से अपने दांव चलने शुरू कर दिए हैं। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने हाल ही में 2007 जैसी चुनावी रणनीति को दोहराने का संकेत दिया है, जहां सोशल इंजीनियरिंग के जरिए उन्होंने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। लेकिन इस बार उनकी रणनीति में एक बड़ा मौन नजर आ रहा है वो है मुस्लिम समुदाय को लेकर उनकी चुप्पी। ये वही समुदाय है जिसने लंबे समय तक यूपी की राजनीति में सत्ता की चाबी तय की है। ऐसे में सवाल उठता है मायावती की चुप्पी क्या एक सोची-समझी रणनीति है या सियासी जोखिम?
2007 में मायावती ने दलित और ब्राह्मणों के गठजोड़ के जरिए इतिहास रचा था। बहुजन से सर्वजन की ओर बढ़ते हुए उन्होंने एक ऐसा समीकरण बनाया था, जो लंबे समय तक चर्चा में रहा। अब 2027 के लिए फिर वही फार्मूला सामने लाया जा रहा है, लेकिन मुस्लिम समाज पर फिलहाल उन्होंने कोई खुला संदेश नहीं दिया है। दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी परंपरागत रूप से मुस्लिम वोट बैंक पर मजबूत पकड़ रखती आई है, और अखिलेश यादव इस वर्ग को लगातार साधने की कोशिश में जुटे हैं। बीजेपी भी पीछे नहीं है प्रधानमंत्री मोदी की योजनाएं और योगी सरकार की लॉ एंड ऑर्डर की नीति के तहत बीजेपी मुस्लिम समाज में ‘सॉफ्ट पेनिट्रेशन’ की कोशिश में है। ऐसे में मायावती की चुप्पी को एक रणनीतिक संतुलन मानने वाले भी हैं, जो मानते हैं कि वो खुलकर मुस्लिमों के समर्थन में बोलकर हिंदू वोटों में ध्रुवीकरण नहीं चाहतीं।
विश्लेषकों की मानें तो मायावती अभी मुस्लिम वोटर से सीधे संवाद से बच रही हैं ताकि उनकी ‘ऑल इनक्लूसिव’ छवि बनी रहे। लेकिन यह रणनीति दोधारी तलवार बन सकती है। अगर मुसलमानों को लगे कि मायावती उनके मुद्दों पर बोल नहीं रही हैं, तो यह वोट बैंक समाजवादी पार्टी की तरफ और मजबूती से जा सकता है। दूसरी ओर, बीजेपी इस स्थिति का फायदा उठाकर विपक्ष के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश करेगी, खासकर महिला मुस्लिम वोटर्स के बीच सरकारी योजनाओं के जरिए। अब चुनावी समीकरण यही पूछ रहा है, क्या मायावती इस बार भी 2007 जैसा करिश्मा दोहरा पाएंगी, या उनकी रणनीतिक चुप्पी उन्हें नुकसान पहुंचाएगी?
2027 का चुनावी संग्राम अब सिर्फ सीटों का नहीं, बल्कि रणनीति, समुदायों की नब्ज और संदेश की लड़ाई बन चुका है। मायावती के पास अभी वक्त है, वो चाहें तो मुस्लिम समाज को लेकर स्थिति साफ कर सकती हैं, या टिकट बंटवारे के ज़रिए संदेश दे सकती हैं। लेकिन अगर ये चुप्पी बरकरार रही, तो SP इसका सीधा फायदा उठा सकती है और BJP इसे अपने ढंग से भुना सकती है। चुनावी बिसात पर चालें तेज़ हैं अब देखना ये है कि कौन चाल टिकेगी, और किसकी बिसात उलट जाएगी।