रेलवे ट्रैकों की सुरक्षा को और बेहतर बनाने के लिए उत्तर प्रदेश में अब यूएसएफडी (Ultrasonic Flaw Detection) तकनीक का उपयोग शुरू कर दिया गया है। यह आधुनिक तकनीक पटरियों के भीतर मौजूद उन खामियों तक का पता लगा लेती है जो आमतौर पर आंखों से दिखाई नहीं देतीं। बढ़ते रेल यातायात और तापमान के कारण पटरियों में बनने वाली सूक्ष्म दरारें हादसों का बड़ा कारण बनती हैं, ऐसे में यह तकनीक रेलवे सुरक्षा में अहम भूमिका निभा रही है।
कैसे काम करती है यूएसएफडी तकनीक?
यूएसएफडी मशीनें अल्ट्रासोनिक तरंगों की मदद से रेल पटरी के भीतर तक जांच करती हैं। पटरी के अंदर की छिपी हुई दरारें, वेल्ड की कमजोरी, ढीले जोड़, और ट्रैक के भीतर बनने वाले खोखले हिस्से तक की जानकारी यह तकनीक कुछ ही सेकंड में दे देती है। इससे कई ऐसी खामियां पकड़ में आ जाती हैं जो सामान्य मानव निरीक्षण में नजर नहीं आतीं पर आगे चलकर बड़े हादसे का कारण बन सकती हैं।
मंडल में तैयार की गई हाई-टेक टीमें
रेलवे के पीआरओ प्रशस्ति श्रीवास्तव के अनुसार-
- मंडल में 9 यूएसएफडी टीमें तैनात हैं।
- 13 प्रशिक्षित इंजीनियर लगातार ट्रैकों की जांच कर रहे हैं।
- सभी टीमों को अत्याधुनिक बी-स्कैन मशीनें उपलब्ध कराई गई हैं, जो पटरियों की अंदरूनी स्थिति का डिजिटल रिकॉर्ड तैयार करती हैं।
- वेल्ड की गुणवत्ता जांचने के लिए डिजिटल वेल्ड टेस्टर भी दिए गए हैं।
इन मशीनों से पटरियों के जोड़ पर मौजूद बेहद सूक्ष्म खामी भी पकड़ में आ जाती है।
साल 2025–26 में इतने हजार किलोमीटर ट्रैक की जांच
यूएसएफडी तकनीक अपनाने के बाद रेलवे ने बड़ी तेज़ी से जांच और मरम्मत का काम किया है। साल 2025–26 में मंडल द्वारा- 3612.1 किलोमीटर ट्रैक, 24,527 वेल्ड, 1,673 टर्नआउट, 1,745 स्विच एक्सपेंशन जॉइंट्स की गहन जांच की गई। जहां भी कमी मिली, तुरंत मरम्मत की गई ताकि खतरा बढ़ने से पहले ही स्थिति को नियंत्रित किया जा सके।
क्यों ज़रूरी है यह तकनीक?
भारत में कई रेल हादसों की मुख्य वजह रही है-
- ट्रैक में दरारें
- वेल्ड टूटना
- पटरियों का खिसकना
यूएसएफडी तकनीक इन समस्याओं को पहले ही पकड़ लेती है, जिससे दुर्घटनाओं की संभावना काफी कम हो जाती है।

