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Noida : अवैध फार्म हाउसों पर बुलडोजर कार्रवाई या दिखावा? सीईओ लोकेश एम की सख्ती के बीच प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल

नोएडा अथॉरिटी के सीईओ सीईओ एम. लोकेश एक स्वच्छ और ईमानदार छवि वाले आईएएस अधिकारी के रूप में जाने जाते हैं। उनकी खासियत यह है कि वे खुद ग्राउंड पर जाकर निरीक्षण करते हैं और किसानों से लेकर शहरवासियों तक, सीधे जनता से मिलकर उनकी समस्याओं का समाधान करते हैं। उनकी इसी शैली ने उन्हें जनता का भरोसा दिलाया है। लेकिन हाल ही में यमुना के डूब क्षेत्र में फार्महाउसों के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई में कुछ ऐसे चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, जिन्होंने न केवल प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं बल्कि सीईओ लोकेश की मेहनत और साख को भी चुनौतीपूर्ण स्थिति में डाल दिया है।

प्राधिकरण की ओर से कहा गया कि यमुना किनारे बने फार्म हाउसों को बुलडोजर से गिरा दिया गया। तस्वीरें और बयान जारी हुए। लेकिन मौके पर जब ‘यूपी की बात’ की टीम पहुंची, तो पाया कि ज़्यादातर फार्म हाउस जस के तस खड़े हैं। केवल कुछ जगह दीवारें या पिलर गिराए गए थे। करीब 25 से अधिक फार्म हाउस आज भी पूरी तरह सुरक्षित हैं।

सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि बुलडोजर असली फार्म हाउसों पर नहीं, बल्कि वहां रहने और काम करने वाले गरीब मजदूरों की झोपड़ियों पर चला। इस कार्रवाई से कई परिवार बेघर हो गए और अब दो वक्त की रोटी के लिए भी जूझ रहे हैं। इससे यह धारणा बनी कि ताकतवरों के फार्म हाउस बचे रहे, जबकि कमजोर वर्ग कुचल गया।

 

इस ध्वस्तीकरण की जिम्मेदारी वर्क सर्किल-10 के सीनियर मैनेजर प्रवीण सलोनिया को दी गई थी। ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के दौरान सीनियर मैनेजर प्रवीण सलोनिया मौके पर 5-7 बुलडोज़र लेकर पहुंचे जैसे ही कार्रवाई शुरू की गई उनके पास न जाने किसके फ़ोन आना शुरू हो गए और वो फ़ोन में व्यस्त हो गए जिसके बाद कार्रवाई का रुख बदल गया ध्वस्तीकरण की में खाना पूर्ति होने लग गई जैसे मजदूरों के घर तोड़ना, फर्श तोड़ना ,दरवाज़ा तोड़ना, शौचालय तोड़ना जैसी हलकी फुलकी कार्रवाई की गई न की पूरा फार्महाउस तोडा गया कुल मिलाकर एक भी फार्महाउस पूर्ण रूप से धवस्त नहीं किया गया लेकिन सवाल यह है कि जिन फार्म हाउसों को गिराया जाना था, वे क्यों सुरक्षित रह गए? क्या कार्रवाई सिर्फ दिखावे के लिए हुई?

प्रवीन सलोनिया की ध्वस्तीकरण में साठगांठ- पहले टालमटोल, फिर खानापूर्ति पूरा मामला यह है कि नोएडा सेक्टर-151  स्थित स्पोर्ट्स लैंड मालिक भरत शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट की सीनियर लॉयर मिसेस सिंह को यमुना किनारे डूब क्षेत्र की जमीन पर फार्महाउस बनवाने का लालच देकर जमीन बेच दी। जब उन्हें सच्चाई पता चली कि यह जमीन डूब क्षेत्र में आती है, तो बिल्डर ने पैसा लौटाने से साफ इनकार कर दिया और यह तक कह दिया कि “नोएडा अथॉरिटी पूरी तरह मेरे साथ है, जो करना हो कर लो।”मिसेस सिंह, जो कि समाजसेवा से भी जुड़ी हैं और सार्थक फाउंडेशन की सदस्य हैं, ने इस धोखाधड़ी की शिकायत 1 अगस्त 2025 को सीईओ के ओएसडी क्रांति शेखर सिंह को लिखित रूप में दी और सख्त कार्रवाई की मांग की।

 

क्रांति शेखर सिंह ने तुरंत सक्रियता दिखाते हुए 7 अगस्त को वर्क सर्किल-10 के वरिष्ठ प्रबंधक प्रवीन सलोनिया को पत्र लिखा और ध्वस्तीकरण सुनिश्चित करने का आदेश दिया। लेकिन यहीं से खेल शुरू होता है।प्रवीन सलोनिया ने इस कार्रवाई को टालने और भू-माफियाओं को बचाने के लिए तरह-तरह की चालें चलीं। 12 अगस्त को उन्होंने एसीपी संजय खत्री को पुलिस बल की मांग के लिए एक पत्र जारी कराया, लेकिन उसमें सेक्टर-151 का नाम तक नहीं लिखा। इसके बजाय दो गांवों कोंडली और तिलवाड़ा का उल्लेख कर पुलिस को भ्रमित कर दिया। इतना ही नहीं, पुराने वर्षों की कार्रवाई (2021, 2022, 2023) का हवाला देकर मामला उलझाने की कोशिश की।सलोनिया ने आगे बहाना बनाया कि 15 अगस्त होने की वजह से पर्याप्त पुलिस बल नहीं मिल पाएगा, इसलिए ध्वस्तीकरण नहीं हो सकता।

जब शिकायतकर्ता ने 18 अगस्त को सीईओ लोकेश एम. से मुलाकात की तो उन्होंने तुरंत ही आदेश दिए कि ध्वस्तीकरण हर हाल में किया जाए। उन्होंने एसीपी को निर्देश भेजे और 20 अगस्त को खुद जिलाधिकारी को पत्र लिखकर डूब क्षेत्र में कार्रवाई में मदद मांगी। साथ ही सिंचाई विभाग को भी सहयोग सुनिश्चित करने का आदेश दिया।

यहां लोकेश की सख्त और पारदर्शी कार्यशैली साफ नजर आती है वे किसी भी बहाने या टालमटोल को बर्दाश्त नहीं करते।26 अगस्त को सुबह 11 बजे भारी पुलिस बल ध्वस्तीकरण के लिए सेक्टर-151 पर मौजूद था। यह फोर्स वाकई इतिहास में सबसे बड़ा था – 200 सिपाही, 50 महिला आरक्षी, 15 महिला सब-इंस्पेक्टर, 2 इंस्पेक्टर, 4 थाना प्रभारी, 1 एसीपी, 1 पीएसी प्लाटून, 2 फायर टेंडर, 2 टियर गैस स्क्वाड और 2 एंबुलेंस।

लेकिन यहां से सलोनिया का नया खेल शुरू हुआ। इतनी बड़ी फोर्स के बावजूद ध्वस्तीकरण खानापूर्ति तक ही सीमित रहा। वीडियो में साफ दिखा कि भू-माफिया के दफ्तर, कर्मचारियों के घर और टॉयलेट तोड़े गए, लेकिन मुख्य पार्टी हॉल जैसी बड़ी संरचना को सिर्फ ऊपर से थोड़ा-सा नुकसान पहुंचाकर “कार्यवाई पूरी” होने की रिपोर्ट भेज दी गई।

इसके अलावा ध्वस्तीकरण के लिए जरूरी पोकलेन मशीन मौके पर नहीं लाई गई। केवल 5 जेसीबी लाई गईं, जिनमें से एक को खराब और दूसरी को पंचर बताकर काम रोका गया। बाकी जेसीबी को छोटे-छोटे हिस्से गिराने में लगाया गया। नतीजा यह निकला कि पूरी कार्रवाई एक औपचारिकता भर साबित हुई।

इतना बड़ा पुलिस बल होने के बावजूद कार्रवाई अधूरी रहना इस बात का संकेत है कि कहीं न कहीं अंदरूनी मिलीभगत या जिम्मेदारी से बचने का प्रयास जरूर हुआ। प्रवीन सलोनिया की भूमिका सबसे संदिग्ध रही।

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