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Loksabha Election 2024: आजादी से पूर्व ही बलिया संसदीय क्षेत्र हो गया था आज़ाद, आइए इसके क्षेत्र के बारे में जानते हैं?

Ballia parliamentary constituency had become independent even before independence, let's know about balia

Ballia parliamentary constituency had become independent even before independence, let's know about balia

बलिया का जिक्र करने से पहले यह जानना जरूरी है कि भारत के नक्शे पर यह कहां स्थित है। राजनीतिक और प्रशासनिक तौर पर बलिया उत्तर प्रदेश का हिस्सा है और पूर्वी इलाके में बिहार की सीमा स्थित है। बलिया जिले को दो बड़ी नदियां गंगा और घाघरा अपने जल से सींचती हैं। या यूं कहें तो भौगोलिक तौर देखा जाए तो यह स्थान खेती के लिए उपयुक्त रहा है।

बलिया का इतिहास

बलिया उत्तर प्रदेश राज्य के कोने में उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है। यह पश्चिम के आज़मगढ़, उत्तर में देवरिया, उत्तर पूर्वी भाग में बिहार और दक्षिण पश्चिमी भाग में ग़ाज़ीपुर से लगा हुआ है। वहीं देखें तो यह शहर अनियमित आकार में है और इसका एक कोना या कहें सीमा दो प्रमुख नदियों के संगम पर है जो कि गंगा और घाघरा नदी है। ये नदियाँ इस शहर को अन्य पड़ोसी शहरों से अलग करती हैं। जैसे गंगा नदी बलिया को बिहार से और घाघरा नदी बलिया को देवरिया से। यह शहर हिंदू धर्म के प्रसिद्ध शहर वाराणसी से केवल एक सौ पैंतीस किलोमीटर की दूरी पर बसा है ।

वहीं बलिया गजेटियर के तहत पौराणिक काल में इस स्थान पर महर्षि भृगु के आश्रम में उनके पुत्र शुक्राचार्य ने दानवराज दानवीर राजा बलि के यज्ञ को सम्पन्न कराया था। संस्कृत भाषा में यज्ञ को याग कहा जाता है। जिससे इस स्थान का नाम बलियाग पड़ा था, और जिसको बाद में बलिया के रूप में जाना जाने लगा है। वहीं कुछ विद्वानों का ये भी मानना है कि यह शहर बुलि राजाओं की राजधानी रही है।

बलिया को लेकर एक बात और प्रसिद्ध है । वह ये कि बलिया 15 अगस्त 1947 में भारत की आजादी से पांच साल पहले 4 दिन के लिए ही सही लेकिन खुद को आजाद करवाने में सफल हुआ था। वो आजादी इसलिए भी खास थी क्योंकि खुद तत्कालिन ब्रिटिश कलेक्टर जे.सी. निगम ने आधिकारिक तौर पर प्रशासन स्वतंत्रता सेनानी चित्तू पांडेय को सौंप दिया था।

बलिया संसदीय सीट से कब कौन जीता

उत्तर प्रदेश की बलिया लोकसभा सीट पर 2014 में हुए आम चुनाव में BJP के भरत सिंह ने जीत दर्ज की थी। उन्‍हें 3,59,758 वोट मिले थे। जबकि दूसरे पायदान पर रहे सपा के नीरज शेखर को 2,20,324 वोट मिले थे।

आपको बता दें कि इस सीट पर पहली बार 1952 में चुनाव हुआ था। तब निर्दलीय उम्‍मीदवार के तौर पर मुरली मनोहर ने यहां से जीत हासिल की थी। वहीं 1957 में कांग्रेस के राधा मोहन सिंह, 1962 में कांग्रेस के मुरली मनोहर और 1967-1971 में कांग्रेस के चंद्रिका प्रसाद ने यहां से दो बार जीत हासिल करने में सफल रहे थे। आखिरी बार इस सीट से कांग्रेस ने 1984 में चुनाव जीता था। इस सीट से प्रसिद्ध और दिग्गज नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कुल आठ बार (1977-2004) जीत हासिल की है।

चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर भी इस निर्वाचन क्षेत्र से दो बार 2007-2009 में सांसद पद पर रह चुके हैं। वैसे, 2014 में चुनाव जीते भरत सिंह पहले बीएसपी प्रमुख मायावती के मंत्रिमंडल में खाद्य राज्यमंत्री के रूप में काम कर चुके हैं।

2019 में इस सीट से किसने फहराया था विजय पटाका

2019 में बलिया संसदीय सीट से भाजपा के वीरेंद्र सिंह ने चुनाव जीता था। उन्हें यहां 469,114 वोट प्राप्त हुए जो कि यहां के कुल वोट प्रतिशत का 47.86 फीसद था। वहीं दूसरे स्थान पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी सनातन पांडे रहे जिन्हें 453,595 वोट मिले जो कि कुल वोट प्रतिशत का 46.28 फीसद है।

2024 में इस सीट से कौन-कौन हैं प्रत्याशी

फिलहाल अब तक किसी भी राष्ट्रीय पार्टी ने अपने उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा है। वहीं भाजपा इस सीट को लेकर ज्यादा परेशानी में है इसलिए वह प्रत्यासी उतारने में देरी कर रही है।

वीरेंद्र सिंह के बारे में

वीरेंद्र सिंह का जन्म 21 अक्टूबर 1956 को श्री रामनाथ सिंह और श्रीमती द्रौपदी सिंह के घर हुआ था। उनका जन्म दोकाटी नामक गांव में हुआ था, जो उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्थित है। उन्होंने अपनी शिक्षा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से कला स्नातक (बीए) विषय से पूरा किया। उन्होंने 19 जून 1981 को रेनू सिंह से शादी की। फिर 1988-1989 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिला अध्यक्ष के रूप में अपना राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की। और 1989 से 1992 तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जिला अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।

जातीय समीकरण

बलिया लोकसभा सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो इस सीट पर सबसे बड़ी आबादी ब्राह्मणों की है जो कि 3 लाख है। वहीं बलिया के दोआबा इलाके में सबसे अधिक संख्या ब्राह्मण की है। फिर यादव, राजपूत व दलित वोट हैं। तीनों वर्ग की आबादी की संख्या यहां पर करीब ढाई-ढाई लाख है और मुस्लिम वोट करीब एक लाख है।

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