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एआई तकनीक से स्वेत क्रांति को मिलेगा बल, देश-दुनिया में यूपी बनेगा नंबर वन

लखनऊ: श्वेत क्रांति के मामले में उत्तर प्रदेश देश-दुनिया में नम्बर वन बने। इसके लिए योगी आदित्यनाथ की सरकार ने लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए नई तकनीक के जरिए रणनीति तैयार की जा रही है। जिस पर योगी सरकार ने काम भी शुरू कर दिया है। दरअसल आर्टिफिशियल इंसिमिनेशन की मदद से लक्ष्य को तय समय में पूरा करने पर फोकस किया जा रहा है। मिशन मिलियन सेक्स्ड आर्टिफिशियल इंसिमिनेशन  इस क्रांति की बुनियाद बनेगा। सेक्स्ड सॉर्टेड सीमेन एक ऐसी तकनीक है, जिसके जरिए जिस गोवंश का कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है उस गोवंश को बछिया ही पैदा होगी। इस बात की संभावना 90 फीसद तक होती है। इसके अलावा इस तकनीक के भविष्य में कई लाभ होंगे। बता दें कि एआई तकनीक के प्रयोग के लिए स्वस्थ्य पशुओं का ही चयन किया जाएगा। जिस नर गोवंश के शुक्राणु से एआई की जाएगी, उसकी पूरी पीढियों का भी पता रहेगा। ऐसे में पैदा होने वाली बछिया अपने माता-पिता से प्राप्त गुणों के कारण अच्छी नस्ल की होगी। इससे दो से तीन साल में दूध उत्पादन में काफी वृद्धि हो जाएगी। वहीं बछड़े कम पैदा होंगे तो जो पैदा होंगे उनकी प्रजाति भी बेहतर होगी। जानकारों के मुताबिक डेयरी सेक्टर में स्थानीय स्तर पर रोजगार और देश के विकास के लिहाज से काफी संभावनाएं हैं। भारत में करीब 8 करोड़ परिवार डेयरी सेक्टर से जुड़े हुए हैं। यह सेक्टर सालाना करीब 8.9 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। इस सेक्टर की मौजूदा वैल्यू करीब 124.93 बिलियन डॉलर है। अनुमान है कि 2030 तक यह बढ़कर 227.53 बिलियन डॉलर हो जाएगी।

उत्तर प्रदेश देश का सर्वाधिक दुग्ध उत्पादक और सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है। स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता और बेहतर होती अर्थव्यवस्था के लिए यह बहुत अच्छा साबित होने वाला है। बेहत्तरीन चिकित्सा और ब्रीडिंग के जरिए यूपी देश ही नहीं बल्कि दुनिया में श्वेत क्रांति के क्षेत्र में अपना डंका बजा सकता है। ऐसे में इस सेक्टर से ज्यादा रोजगार के साथ ही राज्य व देश की अर्थव्यवस्था बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी।

 

सेंट्रल एनीमल ब्रीडिंग इंस्टीट्यूट के पशु चिकित्सक डा. संजीव श्रीवास्तव का एआई तकनीक के बारे में कहना है कि नर पशु के शुक्राणुओं का वजन उनकी सक्रियता के आधार पर अलग-अलग होता है। सक्रिय शुक्राणु कुछ भारी होते हैं। स्पर्मेटोजोआ तकनीक से वजन के अनुसार, सक्रिय शुक्राणुओं को अलग-अगल कर लिया जाता है। इसके बाद जब इनको एक खास मशीन पर रखा जाता है तो सक्रिय एक्स और वाई क्रोमोजोम के शुक्राणु अलग-अलग हो जाते हैं। इनको हिमीकृत वीर्य तकनीक से अलग-अलग संरक्षित कर लेते हैं। इनके जरिए ही कृत्रिम गर्भाधान से इच्छानुसार संतति पैदा करना संभव है।

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