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YEIDA: यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरण स्वयं के संसाधनों से पूरा करेगा छह अधूरे आवास प्रोजेक्ट

यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (YEIDA) ने क्षेत्र में लंबित छह अधूरे आवासीय टाउनशिप प्रोजेक्टों को अपने स्वयं के संसाधनों से पूरा करने का संकल्प लिया है। इन परियोजनाओं में लगभग 6,000 घर खरीदार जुड़े हुए हैं जिनका दस सालों से आशियाने का सपना अधर में लटका हुआ था।

इस महत्वपूर्ण निर्णय के तहत प्राधिकरण ने विस्तृत नीतिगत और कानूनी प्रक्रिया अपनाने की तैयारी शुरू कर दी है, ताकि ब्याज-मुक्त “शून्य अवधि” के नियम समेत सभी दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए खरीदारों को जल्द से जल्द राहत मिल सके।

कानूनी और नीतिगत विश्लेषण

इस फैसले के कानूनी आधार के रूप में सबसे पहले 1976 के उ०प्र० औद्योगिक क्षेत्र विकास अधिनियम की धारा 14 आती है। उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि इस अधिनियम की धारा 14 के तहत YEIDA को पट्टों को निरस्त करके पट्टाबंद भूमि को जब्त करने और अधूरे प्रोजेक्ट वापस लेने का अधिकार है।

वर्ष 2025 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी यहीं अधिकार को पुष्ट करते हुए YEIDA के फैसले को मान्यता दी थी। अदालत ने कहा कि जयप्रकाश एसोसिएट्स (JAL) के 1,000 हेक्टेयर के पट्टे को गैर-अदा की गई देनों के कारण रद्द करना विधि सम्मत था और प्राधिकरण को शेष अधूरे प्रोजेक्ट अपने हाथ में लेकर उन्हें निर्धारित समयावधि में पूरा करने का आदेश दिया।

जीरो पीरियड

इन छह प्रोजेक्टों पर लागू होने वाले नियमों में “जीरो पीरियड” भी शामिल है, जैसा कि अदालत ने फरवरी 2020 से मार्च 2024 की अवधि के लिए घोषित किया। इस “जीरो अवधि” में खरीदारों को अपने बकाया पर कोई ब्याज नहीं देना होगा, जिससे खरीददारों की वित्तीय समस्या कम होगी।

आगे की प्रक्रिया के तहत, YEIDA ने करैएण्डब्राउन जैसी स्वतंत्र एजेंसी से इन परियोजनाओं का सम्पूर्ण सर्वे कराया है। सर्वे में यह आकलन किया जाएगा कि इन परियोजनाओं में कितने घर खरीदार हैं, उनसे कितनी राशि वसूल हुई और अभी कितनी लागत शेष है।

प्राधिकरण बोर्ड के अगले सत्र (7 नवंबर 2025) में इस सर्वेक्षण रिपोर्ट को आधार बनाकर प्रस्ताव रखा जाएगा कि क्या प्राधिकरण को खुद इन प्रोजेक्टों की पूर्ण जिम्मेदारी लेनी चाहिए। यदि यह पाया जाता है कि प्राधिकरण के लिए सर्वाधिक हित में है तो YEIDA अदालत में इस योजना का प्रस्ताव रखेगा।

इस निर्णय में राज्य सरकार की रिहैबिलिटेशन नीति और अमिताभ कांत समिति की सिफारिशें भी संदर्भित हैं। नीति आयोग के पूर्व मुख्य कार्यकारी अमिताभ कांत ने मार्च 2023 में फंसी परियोजनाओं को पूरा करने के उपाय सुझाए थे, जिन्हें उत्तर प्रदेश सरकार ने मौलिक रूप से अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट के केंद्रीय सलाहकार परिषद ने भी बैठक में माना कि उत्तर प्रदेश सरकार ने इन सिफारिशों को लागू कर लिया है।

इन नीतियों के तहत डेवलपर्स को बकाया का 25% जमा कर आगे की देय राशि तीन साल में चुकाने का प्रावधान है, ताकि खरीदारों को उनका रजिस्ट्री (हस्तांतरण) मिल सके। उल्लेखनीय है कि नोएडा अथॉरिटी ने भी इसी नीति का पालन करते हुए कई अटके प्रोजेक्टों को को-डेवलपर मॉडल से पुनरारंभ कराया है।

खरीदारों की प्रतिक्रिया

घर खरीदार इस निर्णय से राहत की उम्मीद कर रहे हैं। दशकों से अधर में लटके इन सपनों के पूरा होने की आशा जताई जा रही है। एक समुह ने अखबारों में कहा कि उन्होंने वर्ष 2011 में फ्लैट बुक किए थे और 2014 तक कब्जा मिलना चाहिए था, पर अब कई वर्षों से नतीजा नहीं मिला।

एक गृहखरीदार ने कहा: “अब इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश से उम्मीद जग गई है कि YEIDA द्वारा वादे के अनुसार हमें अपना घर मिल सकेगा”। इस दौरान लगभग 6–8 हजार खरीदार वर्षों से दर्द-भरी स्थिति में रहे हैं, जिन्होंने अपने सपनों और भुगतान का इंतज़ार किया है।

कुछ खरीदारों ने यह भी टिप्पणी की है कि उनकी जुटाई गई रकम और ब्याजहितों पर स्पष्टता चाहिए।

उदाहरण के लिए, कुछ ने चिंता जताई है कि अदालत के आदेश के अनुसार 11 फरवरी 2020 से जून 2024 तक की अवधि को ‘शून्य अवधि’ घोषित किए जाने से इस दौरान ब्याज लेना बंद हो जाएगा, लेकिन वे जानना चाहते हैं कि जेएएल को पहले दिए गए लगभग ₹2,000 करोड़ की धनराशि का क्या होगा और वह YEIDA को लौटेगी या नहीं।

कुल मिलाकर खरीदारों की प्रतिक्रियाओं में राहत के साथ कुछ आशंकाएं भी हैं: एक ओर उन्हें मन हो रहा है कि अब शायद उनका सपना साकार हो, वहीं दूसरी ओर वे चाहते हैं कि योजना पारदर्शी हो और उन्हें हर जानकारी मिले।

विशेषज्ञों की राय

प्रभावित परियोजनाओं के जीर्णोद्धार पर एक्सपर्ट रियल एस्टेट विश्लेषकों ने सकारात्मक दृष्टिकोण दिखाया है। स्क्वायर यार्ड्स के रवि निरवाल जैसे विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कदम समयोचित और आवश्यक है, क्योंकि यह दशकों पुराने अटके हुए प्रोजेक्ट्स की समस्या को स्थिरता से सुलझाने का एक रचनात्मक मार्ग देता है।

उन्होंने बताया कि इस नीति से प्राधिकरण बकाया राशि वसूल सकता है, जबकि भरोसेमंद डेवलपर्स अच्छी लोकेशन के प्रोजेक्ट अधिग्रहित करके निर्माण पूरा कर सकते हैं। सबसे अहम बात यह है कि इससे घर खरीदारों को कब्जे का रास्ता स्पष्ट होगा और रियल एस्टेट बाजार में विश्वास लौटेगा।

ऐसे ही दृष्टिकोण शहर नियोजन और नीति विशेषज्ञ भी पेश कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकारी हस्तक्षेप से फंसे प्रोजेक्टों को पूरा करना समाज के दृष्टिकोण से सकारात्मक कदम है।

इससे न केवल लाखों परिवारों को उनके घर मिल सकते हैं, बल्कि लंबे समय से बँधे निवेश बाज़ार में छूट सकता है। रियल एस्टेट अनलिस्ट्स ने भी कहा है कि ऐसे प्रयास से बाजार में उत्साह और मांग बढ़ सकती है, जिससे भविष्य में ज़मीन और प्रॉपर्टी कर राजस्व में सुधार की संभावना है।

संभावित आर्थिक एवं सामाजिक प्रभाव

इस पहल से सबसे पहले घर खरीदारों को सीधा आर्थिक लाभ होगा – उन्हें अपने सपनों का आशियाना मिलने से एक स्थाई संपत्ति का अधिकार प्राप्त होगा। कोर्ट द्वारा घोषित “शून्य अवधि” और ब्याज-मुक्त अवधियों से खरीदारों के ऊपर वित्तीय बोझ कम होगा। दूसरी ओर, प्राधिकरण के ख़र्च का भी सवाल है।

YEIDA को इन प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के लिए भारी राशि लगानी होगी, लेकिन प्राधिकरण खुद अनुमान लगा रहा है कि कुल लागत कितनी आएगी और उसमें से कितनी रकम खरीदारों और बचे हुए अविकसित जमीन के पुनर्वितरण से जुटाई जा सकती है। यानी ये देखा जाएगा कि अधूरे प्रोजेक्ट पूरे करने की जिम्मेदारी लेने पर प्राधिकरण के राजस्व पर कितना प्रभाव पड़ेगा।

बाज़ार के दृष्टिकोण से देखें तो ये घटना सकारात्मक संकेत मानी जाएगी। रियल एस्टेट क्षेत्र में निवेशकों और डेवलपर्स में विश्वास बढ़ेगा क्योंकि दिखेगा कि सरकार गंभीरता से खरीदारों की रक्षा कर रही है। इससे यहाँ की ज़मीन की कीमतों और प्रॉपर्टी की डिमांड में स्थिरता आएगी।

उदाहरण के लिए, नोएडा अथॉरिटी ने हाल में बताया कि उनके यहां अब तक 3,724 अपार्टमेंट की रजिस्ट्री हो चुकी है और अगर शेष बकाया जमा कर दिया जाए तो 5,758 और फ्लैट्स की रजिस्ट्री हो सकेगी। यदि यमुना एक्सप्रेसवे क्षेत्र में भी ऐसे प्रोजेक्ट पूरे हो जाएं तो वहाँ भी इसी तरह हज़ारों रजिस्ट्री होने की गुंजाइश है।

सामाजिक रूप से भी फायदा होगा: इतने वर्षों से प्रतीक्षा कर रहे परिवारों को स्थायी आवास मिलकर उनका जीवन स्तर सुधरेगा और कई तरह की सामाजिक-आर्थिक समस्याएं टल जाएंगी। वहीं सरकार के लिए भी राजस्व अर्जन के नए रास्ते खुलेंगे – चाहे वह रजिस्ट्री शुल्क हो, पट्टे के नये आवंटन से आय हो, या आसपास के उद्यमों व करों से मिले संसाधन।

यूपी के अन्य हाउसिंग अथॉरिटियों की पहल की तुलना

इस तरह की पहल उत्तर प्रदेश के दूसरे प्रमुख आवास प्राधिकरणों — नोएडा अथॉरिटी और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी — ने भी की हैं। नोएडा अथॉरिटी ने को-डेवलपर नीति अपनाई है, जिसके तहत एक सक्षम डेवलपर बकाया जमा करके अधूरे प्रोजेक्ट में प्रवेश कर सकता है।

उदाहरण के लिए नोएडा के सेक्टर 168 में सनवर्ल्ड अरिस्टा प्रोजेक्ट में Nimbus Projects ने ₹1,000 करोड़ का निवेश करने और ₹80 करोड़ बकाया चुका कर 400 से अधिक घर खरीदारों की भारी राहत दिलाई है।

नोएडा ने साथ ही चालू अवरोध नीति के अंतर्गत अनैतिक व्यवहार करने वाले बिल्डरों की संपत्तियां जब्त करने और नीलाम करने का फैसला भी लिया है, ताकि हजारों खरीदारों को रजिस्ट्री दिलाई जा सके। नोएडा ने अपने 57 स्थिर प्रोजेक्टों में अब तक 3,724 फ्लैट्स का हस्तांतरण करवाया है और बाक़ी 5,758 फ्लैट्स के बकाया गिना है।

ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने भी इसी साल जुलाई में तीन लम्बे समय से अटके हुए ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट में को-डेवलपर्स शामिल करने की मंजूरी दी है। इनमें Sobha Ltd, Opaa Realty और Swarnim Buildhome LLP जैसे डिवेलपर्स को Atlaspur, पारसवनाथ व AIMS Golf Town के प्रोजेक्ट्स में भागीदारी के लिए चुना गया।

GNIDA ने संयुक्त विकास समझौतों (JDA) और यूपी-रेरा के अनुदान को अनिवार्य करते हुए सुनिश्चित किया कि नए डेवलपर और मौजूदा डेवलपर मिलकर बकाया चुकाएँ और काम पूरा करें। इन पहलों से हज़ारों खरीदारों को अब अपनी जानकारियों के अनुरूप परियोजना पूरी होने की उम्मीद मिली है और अटके मामलों का हल निकल रहा है।

इन दोनों की सफलताओं से स्पष्ट है कि समय पर ठंडे बस्ते किए प्रोजेक्ट्स को पुनर्जीवित करने के लिए सह-विकासक नीति और कड़े कानून प्रभावी सिद्ध हो रहे हैं। यमुना एक्सप्रेसवे में YEIDA की इस पहल से भी खरीदारों को जल्द राहत मिलने तथा क्षेत्र की रियल एस्टेट विश्वसनीयता बनाये रखने में मदद मिलेगी, जैसा नोएडा–ग्रेटर नोएडा में हुआ है।

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