हर रोज़ चांद अपना आकार क्यों बदलता है?
चांद हर रात अलग आकार में दिखता है—कभी पूरा, कभी आधा और कभी दिखाई भी नहीं देता।
चांद के ये बदलते आकार "लूनर फेज़" कहलाते हैं और ये चांद, पृथ्वी और सूर्य की स्थिति पर निर्भर करते हैं।
चांद में अपनी रोशनी नहीं होती। सूर्य की रोशनी चांद से टकराकर धरती पर रिफ्लेक्ट होती है, इसलिए हम उसे चमकता हुआ देखते हैं।
चांद धरती का चक्कर 27.3 दिनों में पूरा करता है, लेकिन एक न्यू मून से अगले न्यू मून तक लगभग 29.5 दिन लगते हैं।
जब चांद, धरती और सूर्य के बीच होता है, तब उसका रोशन हिस्सा धरती की तरफ नहीं होता—इसे न्यू मून (अमावस्या) कहते हैं, और चांद दिखाई नहीं देता।
इसके बाद चांद का कुछ हिस्सा दिखना शुरू होता है, इसे वैक्सिंग क्रेसेंट कहते हैं।
जब हमें चांद का आधा रोशन हिस्सा दिखे, तो इसे फर्स्ट क्वार्टर कहा जाता है।
जब धरती, सूर्य और चांद के बीच आ जाती है, तो चांद पूरा रोशन दिखता है—इसे फुल मून (पूर्णिमा) कहते हैं।
फुल मून के बाद चांद की रोशनी कम होनी शुरू होती है, इसे वेनिंग मून कहा जाता है।
धीरे-धीरे चांद फिर अपनी शुरुआती स्थिति में लौटता है और न्यू मून बनता है—यहीं एक चक्र पूरा हो जाता है।
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