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Gorakhpur: बाढ़ से पहले गोरखपुर बाढ़ खंड 2 की स्थिति चिंताजनक, 70% काम बाकी

उत्तर प्रदेश के जल संसाधन मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, जो गोरखपुर जिले के प्रभारी मंत्री भी हैं, उनके एक हालिया बयान ने प्रदेश में सिंचाई और बाढ़ सुरक्षा की बदहाली को उजागर कर दिया है। झांसी में दिए गए एक बयान में उन्होंने कहा था “पत्रकारों को रोको”, क्योंकि सिंचाई व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। उनका यह बयान उस गंभीर सच्चाई की ओर इशारा करता है, जिसे आज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर में ग्राउंड रिपोर्ट के जरिए खुलकर देखा जा सकता है।

गोरखपुर के बाढ़ खंड और सिंचाई विभाग की हालत यह है कि जिन कार्यों को 15 जून तक पूरा किया जाना था, उनमें अब तक महज 30% कार्य ही हो पाया है। बाढ़ से पहले की तैयारी के लिए निर्धारित यह अवधि बीत चुकी है, और अब नेपाल से जुलाई के पहले सप्ताह में पानी छोड़े जाने की आशंका जताई जा रही है। इसके बावजूद गोरखपुर के बाढ़ से जुड़े इलाकों में ज़रूरी मरम्मत, रेट कट बंद करना, रेन होल और शाही होल जैसी संरचनाओं को दुरुस्त करने का कार्य अधूरा पड़ा है।

गंडक विभाग के गोरखपुर मंडल प्रमुख विकास कुमार सिंह, जिनके कंधों पर बाढ़ पूर्व तैयारियों की ज़िम्मेदारी है, वे सिर्फ एसी चेंबर में बैठकर फाइलों पर समीक्षा करते नज़र आते हैं। ज़मीनी स्तर पर कार्य की स्थिति बेहद खराब है। कई जगहों पर मात्र कागजों पर टेंडर पूरे दिखा दिए गए हैं, लेकिन वास्तविकता में 20% काम भी नहीं हुआ। कुछ जगहों पर बरसात से पहले मिट्टी डाली गई थी, लेकिन पहली ही बारिश में वह बह गई, जिससे इन क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा और बढ़ गया है।

सबसे चिंताजनक बात यह है कि राप्ती और रोहिन जैसी नदियां हर साल मानसून में उफान पर आती हैं और इनके किनारे बसे गांव बुरी तरह बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। लेकिन सिंचाई विभाग की कार्यप्रणाली को देखकर लगता है कि इस बार भी बाढ़ आने से पहले कोई ठोस तैयारी नहीं की गई है। नतीजा यह होता है कि हर वर्ष की तरह इस बार भी आपदा प्रबंधन के नाम पर सरकार करोड़ों रुपये खर्च करती है, लेकिन उसका उपयोग जमीन पर नज़र नहीं आता।

यह लापरवाही केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि जनहित के साथ अन्याय है। जब मंत्री खुद स्वीकार कर रहे हैं कि व्यवस्था ध्वस्त है, तब जरूरी है कि ऐसे निकम्मे और केवल कागजी कार्रवाई करने वाले अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई हो। जरूरत है एक ईमानदार, कर्मठ और जिम्मेदार अधिकारी की, जो समय रहते कार्यों को पूर्ण करे और पूर्वांचल को एक बार फिर बाढ़ की विभीषिका से बचा सके।

यदि सरकार इस बार भी सिर्फ बजट खर्च कर आंकड़े सुधारने में लगी रही, तो इसका सबसे बड़ा खामियाजा उन ग्रामीणों और किसानों को भुगतना पड़ेगा, जिनकी जिंदगी हर साल बाढ़ में उजड़ती है। बाढ़ से पहले चेत जाना ही बुद्धिमानी है वरना आपदा सिर्फ प्राकृतिक नहीं, प्रशासनिक भी बन जाती है।

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