शहर के विकास और बुनियादी सुविधाओं के लिए गंभीर चुनौती खड़ी हो गई है। नोएडा प्राधिकरण के अनुसार, 30 नवंबर तक ग्रुप हाउसिंग की 116 परियोजनाओं पर कुल 34,283 करोड़ रुपये का बकाया है। इसमें से लगभग 25 हजार करोड़ रुपये ऐसे मामलों से जुड़े हैं, जो कोर्ट, एनसीएलटी या वर्षों से ठप पड़ी परियोजनाओं में फंसे हुए हैं। इसका सीधा असर अब नोएडा में यूटिलिटी सेवाओं और बुनियादी ढांचे के विकास पर पड़ता दिखाई दे रहा है।
आय के स्रोत घटे, लैंड बैंक भी नहीं
प्राधिकरण अधिकारियों के अनुसार, नोएडा प्राधिकरण एक ऑटोनॉमस बॉडी है और शहर की बुनियादी सुविधाओं के लिए जमीन, टीएम और अन्य माध्यमों से प्राप्त राजस्व पर निर्भर करता है। फिलहाल प्राधिकरण के पास लैंड बैंक नहीं है, जिससे आय के स्रोत लगातार कम हो रहे हैं। दूसरी ओर, बिल्डरों से बकाया राशि की वसूली भी नहीं हो पा रही है, जिसके कारण विकास कार्य प्रभावित होने की आशंका बढ़ गई है।
नोटिस, जांच और कोर्ट की पैरवी के बावजूद नहीं मिली राहत
प्राधिकरण ने बकाया वसूली के लिए बिल्डरों को कई बार नोटिस जारी किए, आर्थिक अपराध शाखा (EOW) से वित्तीय जांच कराने का आग्रह किया और अदालतों में पैरवी भी की। इसके बावजूद अब तक अपेक्षित राशि वापस नहीं मिल सकी। अमिताभ कांत की सिफारिशों के तहत 57 बिल्डर परियोजनाओं से केवल करीब 800 करोड़ रुपये ही वसूल हो सके हैं।
सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में अटके सबसे बड़े बकाये
सबसे अधिक बकाया उन परियोजनाओं का है, जो सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही हैं। इन मामलों में प्राधिकरण किसी भी प्रकार की सीधी रिकवरी कार्रवाई नहीं कर सकता। आम्रपाली और यूनिटेक समूह इस श्रेणी में सबसे बड़े डिफॉल्टर हैं।
आम्रपाली समूह पर 5,193 करोड़ का बकाया
आम्रपाली समूह की नौ परियोजनाएं, जो वर्ष 2009 से 2011 के बीच आवंटित की गई थीं, पर कुल 5,193 करोड़ रुपये बकाया हैं। इनमें सेक्टर-76 की सिलिकॉन सिटी, सेक्टर-120 की जोड़ियक, सेक्टर-45 की सफायर, सेक्टर-76 की प्रिंसली एस्टेट और सेक्टर-50 की एडन पार्क जैसी परियोजनाएं शामिल हैं। वर्ष 2019 में फंड डायवर्जन और निर्माण कार्य ठप होने के बाद ये सभी परियोजनाएं सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में चली गई थीं।
यूनिटेक सबसे बड़ा डिफॉल्टर, 13,509 करोड़ का बकाया
यूनिटेक समूह नोएडा का सबसे बड़ा डिफॉल्टर बनकर सामने आया है। इसके पांच भूखंडों पर कुल 13,509 करोड़ रुपये का बकाया है। सबसे बड़ा बकाया 2006 में आवंटित सेक्टर-96, 97 और 98 की परियोजनाओं का है। इसके अलावा सेक्टर-113, 117 और 144 में 2007 से 2011 के बीच आवंटित परियोजनाएं भी वर्षों से विवाद और देरी के कारण अटकी हुई हैं। इसी श्रेणी में अब सुपरनोवा सुपरटेक भी जुड़ गया है, जिस पर 3,700 करोड़ रुपये का बकाया बताया जा रहा है।
एनसीएलटी में फंसे 16 डेवलपर, 7,300 करोड़ की देनदारी
सुप्रीम कोर्ट से इतर, 16 डेवलपर ऐसे हैं जो एनसीएलटी (दिवालियापन प्रक्रिया) में फंसे हुए हैं। इन पर कुल लगभग 7,300 करोड़ रुपये का बकाया है। प्रमुख देनदारों में सेक्टर-110 की ग्रेनाइट गेट प्रॉपर्टीज पर 1,260 करोड़, सेक्टर-143 की लॉजिक्स इंफ्राटेक पर 940 करोड़, लॉजिक्स सिटी डेवलपर्स पर 800 करोड़ और सेक्टर-168 की थ्री सी प्रोजेक्ट्स पर 700 करोड़ रुपये बकाया हैं। इसके अलावा सुपरटेक की विभिन्न इकाइयों पर भी 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की देनदारी बनी हुई है।
अधूरी और पूरी लेकिन बकाया परियोजनाएं भी चिंता का विषय
प्राधिकरण ने 30 ऐसी अधूरी परियोजनाओं की पहचान की है, जिन पर 6,761 करोड़ रुपये का बकाया है। वहीं, 13 ऐसी परियोजनाएं भी हैं जो पूरी हो चुकी हैं और कब्जा दिया जा चुका है, लेकिन इसके बावजूद 703 करोड़ रुपये का भुगतान प्राधिकरण को नहीं किया गया है।
बुनियादी सुविधाओं पर दिख सकता है सीधा असर
अधिकारियों का कहना है कि यदि बकाया राशि की वसूली नहीं हो पाती है, तो आने वाले समय में सड़क, सीवर, जलापूर्ति और अन्य बुनियादी सेवाओं पर सीधा असर पड़ सकता है। प्राधिकरण के सामने सबसे बड़ी चुनौती अब राजस्व संतुलन बनाए रखने और लंबित बकाये की वसूली की प्रभावी रणनीति तैयार करने की है।

