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Gorakhpur: “भारत में कोई नया जिन्ना पैदा नहीं होगा”- CM Yogi

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हालिया अपने संबोधन में कहा कि देश में कुछ लोग जाति और भाषा के नाम पर विभाजन कर रहे हैं और उनसे सावधान रहना होगा। सीएम ने चेतावनी देते हुए कहा कि अब “भारत में कोई नया जिन्ना पैदा नहीं होगा” और अगर किसी तरह की ऐसी कोशिश हुई तो उसे रोकने का संदेश दिया — उनका रुख स्पष्ट और कड़ा रहा।

क्या कहा

सीएम योगी ने अपने भाषण में कहा कि समाज में जाति और भाषा के आधार पर दरार डालने की कोशिशें हो रही हैं। उन्होंने बताया कि ऐसे विभाजनकारी विचार देश को कमजोर करते हैं और इसलिए उन्हें कट्टर रूप से रोका जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई “जिन्ना जैसा” विभाजनकारी चरित्र जन्म लेने की कोशिश करे तो उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा — उनके शब्दों में यह संदेश कड़ा और निर्णायक था।

यह पहला मौका नहीं — पहले भी रहे ऐसे बयान

योगी आदित्यनाथ ने बीते वर्षों में भी सार्वजनिक मंचों पर इसी तरह के कड़े रुख वाले बयान दिए हैं — शिक्षण संस्थानों या सार्वजनिक बहसों में “जिन्ना पैदा होने” जैसा इशारा करते हुए परिणामस्वरूप सख्त कार्रवाई की बात कही गई थी।

राजनीतिक संदर्भ और आलोचना

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ऐसे बयानों का उद्देश्य अक्सर विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ कड़ा संदेश देना होता है, लेकिन आलोचक इसे भेदभावपूर्ण या उत्तेजक भी मानते हैं। नागरिक अधिकार और सामाजिक सद्भाव बनाए रखने के लिए सार्वजनिक नेताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे संवेदनशील बयानबाजी से बचें और संवाद को शांतिपूर्ण रखें। (विशेष नोट: यह पैराग्राफ विश्लेषणात्मक है और बयान का समर्थन/विरोध नहीं करता।)

अधिकारी और सार्वजनिक प्रतिक्रिया

वर्तमान बयान के बाद राजनीतिक दलों और नागरिक समाज के कुछ हिस्सों ने प्रतिक्रिया दी है — कुछ ने सीएम के संदेश को सामाज में एकता बनाए रखने की जरूरत के रूप में देखा, जबकि अन्य ने भाषा की तीव्रता पर आपत्ति जताई और संवैधानिक तरीके से बहस को आगे बढ़ाने की अपील की। इस बयान से जुड़ी विस्तृत रिपोर्टिंग और पूर्ववर्ती सम्बंधित टिप्पणियाँ मीडिया में उपलब्ध हैं।

सीएम योगी का यह बयान राजनीतिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर बहस का विषय बना हुआ है। उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया कि विभाजनकारी विचारों को जगह नहीं दी जाएगी, परन्तु इस तरह के भाषणों की भाषाई तीव्रता पर भी विचार और सार्वजनिक संवाद आवश्यक है ताकि सामाजिक शांति और संवैधानिक प्रक्रियाएँ बनी रहें।

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