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Mahakumbh : प्रयागराज में महर्षि दुर्वासा का आश्रम – पौराणिक महत्व और श्रद्धालुओं के लिए अभयदान का स्थल

प्रयागराज, जिसे तीर्थराज भी कहा जाता है, भारतीय सनातन संस्कृति में एक अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यहां के गंगा तट पर स्थित महर्षि दुर्वासा का आश्रम न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पौराणिक कथाओं से भी जुड़ा हुआ है।

By: Desk Team  RNI News Network
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Mahakumbh : प्रयागराज में महर्षि दुर्वासा का आश्रम – पौराणिक महत्व और श्रद्धालुओं के लिए अभयदान का स्थल

प्रयागराज, जिसे तीर्थराज भी कहा जाता है, भारतीय सनातन संस्कृति में एक अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यहां के गंगा तट पर स्थित महर्षि दुर्वासा का आश्रम न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पौराणिक कथाओं से भी जुड़ा हुआ है। महर्षि दुर्वासा, जो कि ऋषि अत्रि और माता अनुसूईया के पुत्र थे, अपनी तपस्या और श्रापों के कारण प्रसिद्ध हैं।

उनका आश्रम प्रयागराज के झूंसी क्षेत्र में गंगा किनारे स्थित है, और यहां की पवित्र भूमि पर भगवान शिव का पूजन करने से अभयदान की प्राप्ति होती है।

महर्षि दुर्वासा और उनके श्रापों का इतिहास

महर्षि दुर्वासा का नाम पौराणिक कथाओं में विशेष स्थान रखता है। उन्हें अपने क्रोध और श्रापों के लिए जाना जाता है। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, देवता इन्द्र ने महर्षि दुर्वासा द्वारा दी गई माला का अपमान किया था, जिसके कारण महर्षि ने देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया।

इस श्राप के परिणामस्वरूप देवताओं को भगवान विष्णु के आदेश पर असुरों के साथ समुद्र मंथन करने की आवश्यकता पड़ी थी, जिससे अमृत की प्राप्ति हुई और देवताओं को फिर से शक्ति मिली। यही कथा महाकुंभ के पर्व से भी जुड़ी हुई है, क्योंकि समुद्र मंथन से निकली अमृत की बूंदें इसी भूमि पर गिरी थीं, और इसे लेकर महाकुंभ का आयोजन होता है।

महर्षि दुर्वासा का आश्रम और शिवलिंग का महत्व

महर्षि दुर्वासा का आश्रम प्रयागराज के झूंसी क्षेत्र के ककरा दुबावल गांव में स्थित है। यहां एक प्राचीन शिव मंदिर भी है, जिसे महर्षि ने स्वयं स्थापित किया था। यह शिवलिंग महर्षि द्वारा किए गए तप और पूजन का प्रतीक है, और मान्यता है कि यहां शिवलिंग का पूजन करने से भक्तों को अभयदान मिलता है। शिवलिंग की पूजा करने से न केवल भक्ति का फल मिलता है, बल्कि यह साधक के जीवन में शांति और आशीर्वाद भी लाता है।

मंदिर में महर्षि दुर्वासा की साधना अवस्था में प्रतिमा स्थापित है, और वहां अत्रि ऋषि, माता अनुसूईया, भगवान दत्तात्रेय, चंद्रमा, हनुमान जी और मां शारदा की प्रतिमाएं भी हैं। यह स्थान भक्तों के लिए एक श्रद्धा का केंद्र है, जहां वे धार्मिक क्रिया-कलापों के साथ-साथ मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करते हैं।

महर्षि दुर्वासा का योगदान और कुम्भ मेला

प्रयागराज के महाकुंभ मेले में महर्षि दुर्वासा का विशेष स्थान है। कुम्भ के दौरान श्रद्धालु यहां आकर महर्षि दुर्वासा के आश्रम और शिवलिंग का पूजन करते हैं। यह स्थान उन्हें अभयदान और मानसिक शांति प्रदान करता है।

पुराणों के अनुसार, महर्षि दुर्वासा ने भगवान विष्णु से अभयदान प्राप्त करने के लिए इस स्थान पर तपस्या की थी, और यही कारण है कि यहां आने से भक्तों को भयमुक्ति मिलती है।

महाकुम्भ 2025 में दुर्वासा आश्रम का जीर्णोद्धार

प्रयागराज में 2025 में होने वाले महाकुंभ के अवसर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर मंदिरों और घाटों के जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा है। पर्यटन विभाग ने महर्षि दुर्वासा के आश्रम और शिव मंदिर का भी जीर्णोद्धार किया है।

मंदिर के प्रवेश मार्ग पर रेड सैंड स्टोन के तीन विशाल द्वार बनाए गए हैं, और मंदिर की दीवारों पर पेंटिंग और लाइटिंग का कार्य भी किया जा रहा है। इस जीर्णोद्धार से मंदिर की भव्यता में वृद्धि हुई है और श्रद्धालु यहां और अधिक श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा अर्चना कर सकते हैं।

This Post is written by Abhijeet Kumar yadav

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