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Loksabha Election 2024: बिजनौर संसदीय सीट के बारें में आइए जानते हैं?

Loksabha Election 2024: Let's know about Bijnor parliamentary seat

Loksabha Election 2024: Let's know about Bijnor parliamentary seat

बिजनौर संसदीय सीट, उत्तर प्रदेश का एक महत्वपूर्ण शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। डिस्ट्रिक्ट गजेटियर के अनुसार बिजनौर मुरादाबाद का हिस्सा था। फिर 1817 में यह मुरादाबाद से अलग हो कर दिया गया, नाम मिला नार्थ प्रोविस ऑफ मुरादाबाद जिसका मुख्यालय बना नगीना और इसके पहले कलक्टर बने थे बोसाकवेट। फिर उन्होंने अपना कार्यभार एनजे हैलहेड को सौंप दिया। इसके बाद हैलहेड ने नगीना से हटाकर बिजनौर को मुख्यालय बना दिया। इस जिले में पांच तहसील थी। पर आजादी की लड़ाई में बास्टा क्षेत्र वालों के ज्यादा सक्रिय रहने पर अंग्रेज अफसरों ने इसे खत्म कर दिया। बाद में 1986 में कांग्रेस ने चांदपुर को तहसील का तबका दिया।

बिजनौर सम्राट अकबर के अधीन मुगल साम्राज्य का अभिन्न हिस्सा था। फिर 18वीं शताब्दी तक रोहिल्ला पश्तूनों ने मुगलों से आजादी हासिल कर ली और बिजनौर में अपना शासन स्थापित कर लिया, जिसे मराठों ने बाद में उखाड़ फेंका। रोहिल्ला, मराठों पर जीत हासिल करने और बिजनौर में अपनी शक्तियाँ बरकरार रखने के अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे।

1772 तक, रोहिल्लाओं ने पैसे के बदले में मराठों को उनके स्थान से बर्खास्त करने के लिए अवध के नवाब के साथ एक संधि भी की, अवध के नवाब मराठों को खदेड़ने और रोहिल्लाओं को सत्ता में लाने में सफल रहे, पर रोहिल्ला नेता भुगतान करने में विफल रहे ऐसे में अवध के नवाब ने धन की सहमति प्रदान कर दी, इसलिए 1774 में अवध के नवाब ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद लेकर गंगापार रोहिल्ला के शासन को बर्खास्त कर दिया और बिजनौर में अपना शासन स्थापित कर लिया।

बिजनौर क्यों प्रसिद्ध है?

उत्तर प्रदेश में स्थित बिजनौर जिला कई मायनों में खास है। ये उतराखंड राज्य से लगी सीमा पर स्थित है। मुरादाबाद मंडल के अंतर्गत आने वाला बिजनौर संसदीय सीट पर महाराजा दुष्यंत और सम्राट भरत की कर्मभूमि के रूप में जाना जाता है। वहीं गंगा किनारे बसा ये जिला अपनी मिली जुली संस्कृति के लिए भी जाना जाता है।

बिजनौर का संसदीय इतिहास

साल 1952 में पहली बार हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्वामी रामानंद शास्त्री बिजनौर से पहले सांसद बने। इसके बाद कांग्रेस ने इस सीट से पांच बार लगातार फतह हासिल की। फिर 1977 में जनता पार्टी के सांसद के यहां से जीत प्राप्त हुई। 1980 में भारतीय पार्टी की स्थापना के बाद मंगल राम प्रेमी यहां से सांसद बने। साल 1989 में बहुजन पार्टी की तरफ से मायावती ने यहां से चुनाव लड़ा और सांसद बनी।

साल 1988 में समाजवादी पार्टी की ओमवती देवी यहां से सांसद चुनी चुनी गई। 1999 में बीजेपी ने सपा को इस सीट पर सिकस्ट दी और शीश राम सिंह देवी सांसद चुनी गई। साल 2004 से 2009 तक यहां राष्ट्रीय लोक दल के सांसदों का कब्जा रहा। 2004 में राष्ट्रीय लोक दल नेता मुंशीराम और 2009 में चौहान संजय सिंह यहां के सांसद बने। फिर 2014 में मोदी लहर के दौरान, लोकसभा चुनाव में बीजेपी के कुंवर भारतेंद्र ने सपा के शाहनवाज राणा को चुनावी रण में हराकर संसदीय सीट पर कब्जा किया।

2019 में क्या रहा परिणाम

बिजनौर लोकसभा सीट पर 2019 में कुल 13 उम्मीदवार मैदान में थे। बीजेपी ने भारतेंद्र सिंह पर ही भरोसा जताते हुए उन्हें मैदान में उतारा था। जबकि गठबंधन से बीएसपी के मलूक नागर मैदान में उतरे थे वहीं कांग्रेस ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी को यहां से उतारा था। लेकिन 2019 चुनाव में इस साट से बीएसपी के मलूक नागर ने जीत प्राप्त की, उन्हें 5,56,556 वोट मिले थे। वहीं बीजेपी भारतेंद्र सिंह 4,86,362 वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे और कांग्रेस के नसीमुद्दीन सिद्दीकी 25,833 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे।

2024 में इस सीट कौन-कौन है उम्मीदवार

मलूक नागर के बारे में

मलूक नागर का जन्म 3 जुलाई 1964 को उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के शकरपुर गांव में रामेश्वर दयाल नागर और शांति नागर के घर में हुआ था। वे एक भारतीय राजनीतिज्ञ और व्यवसायी हैं जो 17वीं लोकसभा में बिजनौर से सांसद भी बने हैं। उन्होंने बसपा के उम्मीदवार के रूप में क्रमशः साल 2009 और 2014 में उत्तर प्रदेश के मेरठ और बिजनौर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ा, लेकिन जीत दर्ज नहीं कर पाए थे।

जातीय समीकरण

बिजनौर जिले में जातीय समीकरण की बात करें तो यहां हिंदुओं की संख्या अधिक होने के बाद भी मुस्लिम समुदाय की अच्छी खासी संख्या है और ये चुनाव में निर्णायक भूमिका में रहते हैं। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, बिजनौर की कुल आबादी 36 लाख से अधिक (36,82,713) है। यहां पर हिंदू आबादी 55.18 % है जबकि मुस्लिम आबादी 43.04% है। हिंदू समाज में दलित आबादी की संख्या करीब 22 फीसदी है। दलितों के अलावा यहां पर जाटों का भी खासा प्रभाव दिखता है।

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