उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले से एक बार फिर सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली उजागर हुई है। सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें एक मरीज को उसके परिजन चारपाई (खटिया) पर लादकर जिला अस्पताल के भीतर लाते दिखाई दे रहे हैं। वायरल वीडियो ने स्वास्थ्य विभाग की लचर व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
यह मामला जिले के मलवा थाना क्षेत्र के मीरमऊ गांव का है। गांव निवासी शिवबरन का 23 वर्षीय पुत्र राम प्रताप घर में रखे फ्रिज को खोल रहा था कि अचानक फ्रिज में आई करंट की चपेट में आ गया। हादसे में वह बुरी तरह झुलस गया। परिजनों ने आनन-फानन में सरकारी एम्बुलेंस को फोन कर सूचना दी, लेकिन काफी इंतजार के बाद भी कोई एम्बुलेंस नहीं पहुंची। मजबूरी में परिजनों ने झुलसे युवक को ट्रैक्टर में खटिया पर लिटाकर जिला अस्पताल पहुंचाया।
जिला अस्पताल पहुंचने पर हालात और भी चिंताजनक हो गए। न तो कोई स्ट्रेचर मुहैया कराया गया और न ही अस्पताल की ओर से कोई कर्मचारी मरीज को लेने बाहर आया। ऐसे में परिजन युवक को उसी खटिया पर लादकर इमरजेंसी वार्ड तक ले गए। वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि कैसे परिजन दर्द से तड़पते युवक को अस्पताल के भीतर खींचते हुए ला रहे हैं।
स्थिति तब और चिंताजनक हो गई जब ड्यूटी पर कोई डॉक्टर मौजूद नहीं मिला। परिजनों ने इलाज की गुहार लगाई, लेकिन डॉक्टर नहीं आए। अंततः एक वार्ड बॉय ने मरीज को भर्ती किया और फिर उसका इलाज शुरू हुआ।
वायरल वीडियो पर जब अधिकारियों से सवाल किए गए तो उन्होंने सारी जिम्मेदारी मरीज के परिजनों पर डाल दी। जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (CMS) डॉ. वीके सिंह ने बयान दिया कि “मालवा से एक मरीज आया था। उसे अस्पताल लाकर भर्ती किया गया और पूरी तरह इलाज के बाद छुट्टी दे दी गई। स्वास्थ्य विभाग की इसमें कोई लापरवाही नहीं है।”
हालांकि, स्वास्थ्य विभाग के इस दावे के बाद भी कई सवाल अनुत्तरित रह गए हैं। पहला सवाल यह कि सूचना देने के बावजूद एम्बुलेंस क्यों नहीं पहुंची? दूसरा, जब मरीज अस्पताल पहुंच गया था, तो उसे खटिया पर भीतर क्यों लाया गया? यदि अस्पताल में पर्याप्त स्ट्रेचर और कर्मचारी हैं, तो क्या वजह रही कि परिजनों को यह दुश्वारी झेलनी पड़ी?
सरकार हर साल करोड़ों रुपये स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करती है। बावजूद इसके ज़मीनी स्तर पर व्यवस्थाएं चरमरा चुकी हैं। यह घटना केवल एक उदाहरण है, लेकिन यह स्पष्ट करता है कि आपात स्थिति में भी न तो एम्बुलेंस समय पर पहुंचती है और न ही अस्पताल के भीतर मरीजों को लाने-ले जाने की पर्याप्त व्यवस्था है। यह घटना न केवल संवेदनशीलता की कमी को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि तकनीकी सुधारों और योजनाओं का लाभ आमजन तक नहीं पहुंच पा रहा है।