उत्तर प्रदेश के संभल जिले में अतिक्रमण के खिलाफ प्रशासन ने सख्त रुख अपनाया है। मामला चंदौसी नगर पालिका क्षेत्र के वारिस नगर का है, जहां नगर पालिका की 6 बीघा से अधिक जमीन पर वर्षों से अवैध कब्जा किया गया था। इस जमीन पर कई मकानों और एक मस्जिद के निर्माण की पुष्टि प्रशासनिक जांच में हुई है। जांच में साफ हुआ कि रजा ए मुस्तफा मस्जिद सहित कुल 34 मकान नगर पालिका की जमीन पर अवैध रूप से बनाए गए हैं।
संभल के जिलाधिकारी डॉ. राजेंद्र पेंसिया ने इस मामले में स्पष्ट आदेश दिया था कि चाहे सरकारी जमीन पर मकान हो, दुकान हो या फिर कोई धार्मिक स्थल – सभी अवैध निर्माण को हटाया जाएगा। इसी के तहत बीते दिनों मस्जिद प्रबंधन को नोटिस जारी किया गया था, जिसमें मस्जिद खाली करने के लिए 15 दिन का समय दिया गया था।
नोटिस मिलने के बाद रजा ए मुस्तफा मस्जिद में नमाज अदा करना बंद कर दिया गया और मस्जिद को बंद कर उस पर ताला जड़ दिया गया। बुधवार की सुबह से मस्जिद को गिराने की प्रक्रिया शुरू की गई। खास बात यह रही कि इस कार्यवाही में प्रशासन की ओर से बल प्रयोग नहीं किया गया, बल्कि मस्जिद की इंतजामिया कमेटी ने स्वयं आगे आकर अवैध निर्माण को गिराना शुरू कर दिया।
करीब एक दर्जन मजदूरों की मदद से मस्जिद को तोड़ने का काम जारी है। मस्जिद के मुतवल्ली (प्रबंधक) सिराजुद्दीन ने मीडिया से बातचीत में बताया कि वह प्रशासन के आदेश का सम्मान करते हैं और स्वयं मस्जिद को हटवा रहे हैं, क्योंकि यह जमीन नगर पालिका की है।
इस पूरे घटनाक्रम में प्रशासन की भूमिका सख्त लेकिन संवेदनशील रही। जिलाधिकारी डॉ. राजेंद्र पेंसिया ने दोहराया कि “सरकारी जमीनों पर किसी भी प्रकार का अवैध कब्जा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। चाहे वो धार्मिक स्थल हो या आवासीय भवन, सभी पर समान रूप से कार्रवाई की जाएगी।” उन्होंने यह भी बताया कि संभल, चंदौसी और बहजोई क्षेत्रों में अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही लगातार चल रही है और आने वाले दिनों में और भी अतिक्रमण हटाए जाएंगे।
प्रशासन की इस कार्रवाई को लेकर स्थानीय जनता में मिश्रित प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कुछ लोग इस निर्णय को न्यायसंगत और कानून का पालन मान रहे हैं, तो वहीं कुछ समुदाय विशेष से जुड़े लोगों में नाराजगी भी देखी जा रही है। हालांकि, मस्जिद कमेटी द्वारा स्वयं मस्जिद गिराने के कदम ने तनाव की स्थिति को काफी हद तक टाल दिया।
यह मामला उत्तर प्रदेश में अतिक्रमण और सरकारी जमीनों की वापसी को लेकर सरकार की नीति का एक बड़ा उदाहरण बनकर उभरा है। प्रशासनिक स्तर पर पारदर्शिता और संवेदनशीलता के साथ लिया गया यह निर्णय कानून के समक्ष सबकी समानता की भावना को दर्शाता है।